भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शिव शिव हर हर जपत जग / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 29 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(राग भैरव-तीन ताल)
शिव शिव हर हर जपत जग मन-वाणी सौं नित्य।
लहत नित्य आनन्द सो भव दुख मिटत अनित्य॥
दुर्लभ हर-पद-रति परम शिव-स्वरूपको ज्ञान।
पावत सो नर सहज ही शुद्ध हृदय मतिमान॥