भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर हिटलर / नाथ कवि
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 18 जनवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाथ कवि |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBrajBhashaRa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हर पालत हर सृजत हैं, हर कर्त्ता संहार।
या कलियुग के बीच में, हर हिटलर अवतार॥
हर हिटलर अवतार, युगन ऐसी चल आई।
जब अवनी पै बढ़ें पाप प्रगटे तहाँ जाई॥
जलचर थलचर यान सो करत अनौखी मार है।
जो जीते या समर को तौ निश्चय अवतार है॥