भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैंटीन / मुकेश तिलोकाणी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:47, 6 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश तिलोकाणी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुन जो कमु
मेल झोल कैंटीन,
चौ तरफ़ फहिलियल
टेबल कुर्सीयूं
गोल घेरे में हू।
हुनजा साथी
कठ पुतलियूं, गुॾा गुॾियूं।
हथ जे, इशारे सां
बिना पैसे शो।
आनंद माणींदड़
चोॿा, चुॿा-सुॿा, लंगूर
रुखा रुह।
फिथल वांङण।
पैसे कोप चांहि पी
सूटा हणीं, टूटा उछिले
रोज़ मिलन
कैंटीन में।