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कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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ॐ श्री परमात्मने नमः
शांति पाठ
रक्षा करो पोषण करो, गुरु शिष्य की प्रभु आप ही,
ज्ञातव्य ज्ञान हो तेजमय, शक्ति मिले अतिशय मही।
न हों पाराजित हम किसी से, ज्ञान विद्या क्षेत्र में,
हो त्रिविध तापों की निवृति, न प्रेम शेष हो नेत्र में॥
- प्रथम अध्याय
- प्रथम अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- प्रथम अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- प्रथम अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- प्रथम अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- प्रथम अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- द्वितीय अध्याय
- द्वितीय अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- द्वितीय अध्याय / प्रथम वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- द्वितीय अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- द्वितीय अध्याय / द्वितीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- द्वितीय अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
- द्वितीय अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति