भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िंदगी कुछ हसीं दिखाई दे / ध्रुव गुप्त
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:51, 2 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव गुप्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ज़िंदगी कुछ हसीं दिखाई दे
मेरी नीयत में कुछ बुराई दे
हम तेरी रूह तक उतर जाएं
और कुछ रोज़ की ज़ुदाई दे
अपनी तन्हाइयों के पास चलो
शोर में गर न हम सुनाई दें
चांद में दाग नहीं, पानी है
चांद किसको मगर सफ़ाई दे
तेरे होने की क़द्र हो हमको
इतनी थोड़ी सी बेवफ़ाई दे
एक ज़रा दर्द छुपा ले सबसे
ज़िंदगी भर की मत कमाई दे
कुछ मुलायम हमारे बीच रहे
इस सलीके से तो विदाई दे
दर्द सबके बयान करने हैं
दे क़लम मुझको, रोशनाई दे