भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी जान ले क्या नफ़ा पाइएगा / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:26, 20 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी जान ले क्या नफ़ा पाइएगा।
छुड़ाकर ए दामन किधर जाइएगा॥
जो कहता हूँ अब रहम हो जाय मुझ पर।
तो कहते हैं फिर आप आ जाइएगा॥
किया कत्ल तेगे निग़ह से जो मुझ को।
कदमरंजा मरकद पर फरमाइएगा॥
इनायत करो हुस्न के जोश में वरना।
फिर हाथ मल-मल के पछताइएगा॥
वो हँसते हैं सुनकर जो कहता हूँ उनसे।
जलाकर मुझे आप क्या पाइएगा॥
निकलवा के छोड़ेंगे बदरीनारायन।
अगर आप मेरे तरफ आइएगा॥3॥