भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कजली / 8 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:56, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
॥अन्य॥
आये सावन, मदन जगावन, बिरह बढ़ावन ऐ आली॥
धावन लागीं लखो बरसावन, घेरि घटा घन काली।
तावन लागी तनै मनभावन, बिन चपला उँजियाली॥
गावन लागीं रिझावन निज, पियजिय नव जोबन वाली।
कारन कौन प्रेमघन अजहूँ, नहिं आए बनमाली॥18॥