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कजली / 21 / प्रेमघन

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झूलै नवल लला सँग नवेली ललना।
ताक झाँक औ झुकनि मैं छुटत छल ना॥
झोंका लहि अकुलाय, प्यारी अंगन दुराय;
डरी जाय जाय, अंचल कहूँ तै टल ना॥
पिय लगै हिय आय, तियजिय सकुचाय;
लेन चहत बचाय, पै चलत बल ना॥
जौ लजाय, अनखाय बाँकी भौंहन चढ़ाय;
जात जुवति रिसाय, तौ परत कल ना॥
फेरि नैनन मिलाय, मन्द-मन्द मुसुकाय;
प्रेमघन बरसाय, रस तजै पल ना॥40॥