कहते थे दादा जी-‘दशहरा में
नीलकंठ का दर्शन होता है शुभकारी’
कहीं नहीं दिखता नीली गर्दन वाला वह पंछी
चिलबिल, बांस, इमली, गुलर के पेड़ों पर
फुदकता हुआ, फुसफुसाती है हवा कानों में
‘दबोच ले गयी है उसे भी
विकास की आंधी ने’
कहते थे दादा जी-‘दशहरा में
नीलकंठ का दर्शन होता है शुभकारी’
कहीं नहीं दिखता नीली गर्दन वाला वह पंछी
चिलबिल, बांस, इमली, गुलर के पेड़ों पर
फुदकता हुआ, फुसफुसाती है हवा कानों में
‘दबोच ले गयी है उसे भी
विकास की आंधी ने’