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न बहुरे लोक के दिन / अनामिका सिंह 'अना'
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न बहुरे लोक के दिन
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रचनाकार | अनामिका सिंह 'अना' |
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प्रकाशक | बोधि प्रकाशन, जयपुर - 302006 |
वर्ष | 2021 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | आधुनिक जीवन-शैली |
विधा | नवगीत |
पृष्ठ | 160 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- अम्मा की सुध आई / अनामिका सिंह 'अना'
- आँत करे उत्पात / अनामिका सिंह 'अना'
- चिरैया बचकर रहना / अनामिका सिंह 'अना'
- न बहुरे लोक के दिन (नवगीत) / अनामिका सिंह 'अना'
- लानत रख लो / अनामिका सिंह 'अना'
- जय जय जय बस बोल जमूरे / अनामिका सिंह 'अना'
- रोटी का भूगोल / अनामिका सिंह 'अना'
- गंगी खड़ी उदास / अनामिका सिंह 'अना'
- धर्म खड़े ले हाथ ज़ख़ीरे / अनामिका सिंह 'अना'
- नाख़ून सत्ता के / अनामिका सिंह 'अना'
- अनुसन्धान चरित पर तेरे / अनामिका सिंह 'अना'
- एक क़लम पर सौ ख़ञ्जर हैं / अनामिका सिंह 'अना'
- छोड़ो जी सरकार / अनामिका सिंह 'अना'
- टूट रहा करिहाँव / अनामिका सिंह 'अना'
- बन्धक चन्दन की सुवास / अनामिका सिंह 'अना'
- सत्ता की मेहराब / अनामिका सिंह 'अना'
- दाने चार आए घर / अनामिका सिंह 'अना'
- कोख भी कुछ कसमसाई / अनामिका सिंह 'अना'
- पतंगें कटतीं गली-गली / अनामिका सिंह 'अना'
- आग लगा दी पानी में / अनामिका सिंह 'अना'
- रूढ़ियों की बेड़ियाँ / अनामिका सिंह 'अना'
- काग मुण्डेरों पर / अनामिका सिंह 'अना'
- यह न होगा / अनामिका सिंह 'अना'
- क्या खोया क्या पाया हमने / अनामिका सिंह 'अना'
- कोरे हुए विमर्श / अनामिका सिंह 'अना'
- अधर करें उत्पात / अनामिका सिंह 'अना'
- निकला शून्य फलन / अनामिका सिंह 'अना'
- सजन ने रचे प्रीति के छन्द / अनामिका सिंह 'अना'
- सूखे नदी कछार / अनामिका सिंह 'अना'
- मौसम अखर गया / अनामिका सिंह 'अना'
- यादों की गुल्लक / अनामिका सिंह 'अना'
- हुई भूख अति ढीठ / अनामिका सिंह 'अना'
- रतनारी सुबहें / अनामिका सिंह 'अना'
- खगकुल है बेज़ार / अनामिका सिंह 'अना'
- भूखी चील रही / अनामिका सिंह 'अना'
- कितने भेष धरे हैं हमने / अनामिका सिंह 'अना'
- गाँव बाहर बह रही है एक नदिया / अनामिका सिंह 'अना'
- सम्बन्धों का गर्भ न ठहरा / अनामिका सिंह 'अना'
- व्यथा मुनादी कर रही / अनामिका सिंह 'अना'
- रङ्गमञ्च पर सभी जमूरे / अनामिका सिंह 'अना'
- अहेरी आया लेकर जाल / अनामिका सिंह 'अना'
- नोक है टूटी क़लम की / अनामिका सिंह 'अना'
- सभ्यताओं के लिए नासूर / अनामिका सिंह 'अना'
- आधुनिकता ने हमें बौरा दिया / अनामिका सिंह 'अना'
- झुका सदी का हर लिलार है / अनामिका सिंह 'अना'
- बस्तियों में काग / अनामिका सिंह 'अना'
- क़लम करे अनुरोध सुनो / अनामिका सिंह 'अना'
- तरी-तरी मन घाट / अनामिका सिंह 'अना'
- जब पहेली जीवन घट / अनामिका सिंह 'अना'
- जुगनुओं की ख़ैर पर / अनामिका सिंह 'अना'