भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली उत्तरकाण्ड पद 31 से 40 तक/पृष्ठ 7
Kavita Kosh से
(37)
कैकेयी जौलों जियति रही |
तौलों बात मातुसों मुँह भरि भरत न भूलि कही ||
मानी राम अधिक जननीतें, जननिहु गँस न गही |
सीय-लषन रिपुदवन राम-रुख लखि सबकी निबही ||
लोक-बेद-मरजाद दोष-गुन-गति चित चख न चही |
तुलसी भरत समुझि सुनि राखी राम-सनेह सही ||