भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
Kavita Kosh से
दोहा
(कविकृत सज्जन प्रशंसा-वर्णन)
लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं, दैहैं सुमति बनाइ ।
रहै भलाई भलेन मैं, केबल अंग-सुभाइ ॥६२॥