भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज का दौर सच से आरी है / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:59, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=फ़िक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज का दौर सच से आरी है
हर तरफ इक फ़रेबकारी है

आप मेरा यक़ीन तो कीजे
ये ज़मीं चाँद से उतारी है

नन्हें हाथों में एक बच्चे के
काग़ज़ी नाव कितनी प्यारी है

काम आता है कौन मुश्किल में
सिर्फ मतलब की रिश्तेदारी है

मुझ में वो हौसला हैं जीने का
मौत हर बार मुझसे हारी है

सबको इक दिन शिकार होना है
वक़्त सबसे बड़ा शिकारी है

उससे मिलने के वास्ते ऐ सिया
ये तसव्वुर भी इक सवारी है