भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोटि-कोटि कंदर्प-दर्पहर हैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:45, 2 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोटि-कोटि कंदर्प-दर्पहर हैं माधव सौन्दर्य-निधान।
तुहें देखते ही बढ़ आयी इनमें सुन्दरता सुमहान॥
माधव हैं सौन्दर्य अतुल-माधुर्य-रस-सुधा पारावार।
शशि-ज्योत्स्नासे सागरकी ज्यों उठती आनन्दोर्मि अपार॥
देखो! कैसे विह्वल हो, ये भूल स्वरूपानन्द पवित्र।
तव मुख-कमल-निरीक्षण-सुखमें खड़े विभोर लिखे-से चित्र॥