भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गेट वे ऑफ़ इण्डिया / शरद कोकास
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:31, 1 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह=हमसे त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शाम के साये कुछ गहराने लगे
गेट वे ऑफ इंडिया की परछाईं ने
अरब सागर की एक लहर को छुआ
और उस पर पूरी तरह छा गई
पाँच सितारा ताज की मरम्मत करते हुए
एक मज़दूर ने डूबते सूरज को सलाम किया
एक कबूतर ने मुंडेर से उड़ान भरी
और तुम्हारी जुल्फ हवा में लहराई
बस एक क्लिक की आवाज़ गूंजी
और तुम कै़द हो गई
मन के कैमरे में।
-2009