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झाँझरियाँ झनकैगीँ खरी खनकैगीँ चुरी तन को तन तोरे । | झाँझरियाँ झनकैगीँ खरी खनकैगीँ चुरी तन को तन तोरे । |
04:21, 16 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
झाँझरियाँ झनकैगीँ खरी खनकैगीँ चुरी तन को तन तोरे ।
दासजू जागती पास अली परिहास करैँगी सबै उठि भोरे ।
सौँह तिहारी हौँ भाजि न जाऊँगी आई हौँ लाल तिहारे ही घोरे ।
केलि की रैन परी है घरीक गई करि जाहु दई के निहोरे ।
दास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।