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विश्वनाथ की न्यारी नगरी / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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सुनो कबीरा
कल हम लुटे तुम्हारी नगरी में
आये थे हम यही सोचकर
नगरी लूटेंगे
ठगी करेंगे और दिखाएँगे
तुमको ठेंगे
हमें मिले
दुनिया-भर के व्यापारी नगरी में
सभी आये थे दाँव लगाने
नगरी को ठगने
पैदा किये नये युग में ठग
सारे ही जग ने
फँसे दिखे तुम
जाल बिछे थे सारी नगरी में
उलटी बाज़ी खेल रहे थे
अपने सुँघनी साहु
चन्द्रमौलि को पूज रहे थे
उन्हें ग्रस गये राहु
पिटा दिवाला
विश्वनाथ की न्यारी नगरी में