भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"शकुन्तला / अध्याय 1 / भाग 1 / दामोदर लालदास" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दामोदर लालदास 'विशारद' }} {{KKPageNavigation |स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:25, 15 मार्च 2014 के समय का अवतरण
मातुक अंकमें बैसल बाल-गणेश चिबाबथि दिव्य मिठाई ।
ताहि समय जननी लग ठाढ़ षडानन देखल खाइत भाई।।
मांगल मोदक लय गज-आननसँ ‘उगला’ झट देल देखाई।
से लखि मातु-पिता मुसुकाथि तथा मुसुकाथि गणेशहुँ भाई।।
मंगल से मुसकान महेश, गणेश, षड़ानन और भवानिक।
मंगल देधु बना रचना मम, दै प्रतिभा कृपया मधु-वानिक।।
काव्यकलाक विलक्षणता, मधुता, रसता सभ हो रस-खानिक।
जे पढि़ मोद-विनोद बढै़ कवि, कोविद, दिव्यकला-रस-ज्ञानिक।।