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शरशय्या / पहिल सर्ग / भाग 5 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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सकल शास्त्रके आगु कए
धनुष कान्हपर धारि।
गुरुकुल शिक्षा हेतु नित
लेलन्हि श्रम अवधारि।।21।।
पुस्तक पढ़ि सिद्धान्तसँ
भए पण्डित निष्णात।
सिखि विद्या स्नातक भेला
अन्तः सलिका-स्नात।।22।।
सुरवाणी पटु भावमय
कविसँ कविता बूझि।
रचथि काव्य रसमय मधुर
गेलन्हि अन्तर सूझि।।23।।
भार्गबस सिखि नीति सब
राजनीति विद्वान्।
भार्गव-सेवास सिखल
धनुर्वेद विज्ञान।।24।।
कएल एकैस बेर जे क्षत्रिय-
वंशक करसँ स्वयं निपात।
तनिक वीरत के अपनोलन्हि
पुरुबंशक बालक अबदात।।25।।