भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सपनों में होने पर भी खुश था / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: सपनों में विचरना नियति थी उसकी कोई शौक या स्वेच्छा नहीं। पिछली …)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=रवीन्द्र दास
 +
}}
 +
<poem>
 
सपनों में विचरना नियति थी उसकी  
 
सपनों में विचरना नियति थी उसकी  
 
 
कोई शौक या स्वेच्छा नहीं।  
 
कोई शौक या स्वेच्छा नहीं।  
 
 
पिछली जिंदगियों में बिताए थे उसने भी सुख और आराम के हकीकी वक्त  
 
पिछली जिंदगियों में बिताए थे उसने भी सुख और आराम के हकीकी वक्त  
 
 
उसकी याद अब भी है उसके जेहन में  
 
उसकी याद अब भी है उसके जेहन में  
 
 
किसी ताजे घाव की मानिंद  
 
किसी ताजे घाव की मानिंद  
 
 
कि कोशिश करके भी नहीं भुला पा रहा था अपना अतीत।  
 
कि कोशिश करके भी नहीं भुला पा रहा था अपना अतीत।  
 
 
उसने किया था ज़िक्र कई बार  
 
उसने किया था ज़िक्र कई बार  
 
 
नशे की हालत में  
 
नशे की हालत में  
 
 
करता हुआ बक-बक बेसिर-पैर की बातें।  
 
करता हुआ बक-बक बेसिर-पैर की बातें।  
 
 
मुआफी की शक्ल में मैंने भी सुना करता था झूठ सी सचाई  
 
मुआफी की शक्ल में मैंने भी सुना करता था झूठ सी सचाई  
 
 
कि नही मिल पाया कोई मुनासिब उस्ताद  
 
कि नही मिल पाया कोई मुनासिब उस्ताद  
 
 
वरना नज्मों की कमी क्या थी मेरे दिल में।  
 
वरना नज्मों की कमी क्या थी मेरे दिल में।  
 
 
ऐसा ही कहता था तब भी  
 
ऐसा ही कहता था तब भी  
 
 
ऐसा ही कहता है अब भी  
 
ऐसा ही कहता है अब भी  
 
 
लेकिन आ गया है फर्क मेरे सुनने में।  
 
लेकिन आ गया है फर्क मेरे सुनने में।  
 
 
न जाने क्यों करने लगा हूँ यकीन उसपर  
 
न जाने क्यों करने लगा हूँ यकीन उसपर  
 
 
हर मुनासिब कोशिश दिलाता हूँ अहसास  
 
हर मुनासिब कोशिश दिलाता हूँ अहसास  
 
 
कि मुझे उसपर यकीन है सौ फीसदी।  
 
कि मुझे उसपर यकीन है सौ फीसदी।  
 
 
उसकी बातें मुझे लगती हैं बेहद खुबसूरत  
 
उसकी बातें मुझे लगती हैं बेहद खुबसूरत  
 
 
बेहद हसीन  
 
बेहद हसीन  
 
 
वह खुश रहे।  
 
वह खुश रहे।  
 
 
होगा सपना उसके लिए  
 
होगा सपना उसके लिए  
 
 
मेरे लिए तो उसका सपना भी सच है,  
 
मेरे लिए तो उसका सपना भी सच है,  
 
 
शायद सच से भी ज्यादा खुबसूरत और दिलचस्प ।  
 
शायद सच से भी ज्यादा खुबसूरत और दिलचस्प ।  
 
 
यह जानकर मुझे बेहद इत्मिनान है  
 
यह जानकर मुझे बेहद इत्मिनान है  
 
 
कि वह खुश है  
 
कि वह खुश है  
 
 
सपने में होने के बावजूद।  
 
सपने में होने के बावजूद।  
 
+
मैं करता हूँ दुआ, अगर कहीं वजूद है खुदा का  
मैं करता हूँ दुआ , अगर कहीं वजूद है खुदा का  
+
 
+
 
कि टूटे न उसका सपना,  
 
कि टूटे न उसका सपना,  
 
 
बिखरे न उसकी खुशी,  
 
बिखरे न उसकी खुशी,  
 
 
खुशी से ज्यादा दौलत लेकर भी कोई कर ही क्या लेगा !
 
खुशी से ज्यादा दौलत लेकर भी कोई कर ही क्या लेगा !
 +
</poem>

09:30, 16 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

सपनों में विचरना नियति थी उसकी
कोई शौक या स्वेच्छा नहीं।
पिछली जिंदगियों में बिताए थे उसने भी सुख और आराम के हकीकी वक्त
उसकी याद अब भी है उसके जेहन में
किसी ताजे घाव की मानिंद
कि कोशिश करके भी नहीं भुला पा रहा था अपना अतीत।
उसने किया था ज़िक्र कई बार
नशे की हालत में
करता हुआ बक-बक बेसिर-पैर की बातें।
मुआफी की शक्ल में मैंने भी सुना करता था झूठ सी सचाई
कि नही मिल पाया कोई मुनासिब उस्ताद
वरना नज्मों की कमी क्या थी मेरे दिल में।
ऐसा ही कहता था तब भी
ऐसा ही कहता है अब भी
लेकिन आ गया है फर्क मेरे सुनने में।
न जाने क्यों करने लगा हूँ यकीन उसपर
हर मुनासिब कोशिश दिलाता हूँ अहसास
कि मुझे उसपर यकीन है सौ फीसदी।
उसकी बातें मुझे लगती हैं बेहद खुबसूरत
बेहद हसीन
वह खुश रहे।
होगा सपना उसके लिए
मेरे लिए तो उसका सपना भी सच है,
शायद सच से भी ज्यादा खुबसूरत और दिलचस्प ।
यह जानकर मुझे बेहद इत्मिनान है
कि वह खुश है
सपने में होने के बावजूद।
मैं करता हूँ दुआ, अगर कहीं वजूद है खुदा का
कि टूटे न उसका सपना,
बिखरे न उसकी खुशी,
खुशी से ज्यादा दौलत लेकर भी कोई कर ही क्या लेगा !