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"साँसों की रात थी वह / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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इतनी नजदीकियों के बावजूद नहीं हो पा रहा था यकीन | इतनी नजदीकियों के बावजूद नहीं हो पा रहा था यकीन | ||
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कि हम साथ हैं, | कि हम साथ हैं, | ||
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गोकि यह भी मालूम न था | गोकि यह भी मालूम न था | ||
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कि साथ होना कहते किसे हैं ? | कि साथ होना कहते किसे हैं ? | ||
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न कोई सवाल था | न कोई सवाल था | ||
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और न कोई जवाब । | और न कोई जवाब । | ||
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बस साँसें थी | बस साँसें थी | ||
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आँखें भूल चुकी थी देखना | आँखें भूल चुकी थी देखना | ||
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सारी ताकत समा गई थी साँसों में | सारी ताकत समा गई थी साँसों में | ||
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याद करो तुम भी | याद करो तुम भी | ||
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साँसों की रात थी वह। | साँसों की रात थी वह। | ||
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बेशक बीत गया अरसा | बेशक बीत गया अरसा | ||
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गुजर गया एक जमाना | गुजर गया एक जमाना | ||
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फिर भी, ओ मेरे तुम ! | फिर भी, ओ मेरे तुम ! | ||
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एक बार फिर मुझे उस रात में ले चलो | एक बार फिर मुझे उस रात में ले चलो | ||
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वह रात ! सचमुच, | वह रात ! सचमुच, | ||
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साँसों की रात थी वह। | साँसों की रात थी वह। | ||
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09:25, 16 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
इतनी नजदीकियों के बावजूद नहीं हो पा रहा था यकीन
कि हम साथ हैं,
गोकि यह भी मालूम न था
कि साथ होना कहते किसे हैं ?
न कोई सवाल था
और न कोई जवाब ।
बस साँसें थी
दहकती सी, बहकती सी - भागती बदहवास
आँखें भूल चुकी थी देखना
कान सुनना.....
सारी ताकत समा गई थी साँसों में
याद करो तुम भी
साँसों की रात थी वह।
बेशक बीत गया अरसा
गुजर गया एक जमाना
फिर भी, ओ मेरे तुम !
एक बार फिर मुझे उस रात में ले चलो
वह रात ! सचमुच,
साँसों की रात थी वह।