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गर तुझसे मुझे इतनी मोहब्बत नहीं होती / 'महताब' हैदर नक़वी

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गर तुझसे मुझे इतनी मोहब्बत नहीं होती
यूँ रंज उठाने में भी लज़्ज़त नहीं होती
 
क्यों वस्ल के असबाब1 बना करते हैं हर शब
क्यों हिज्र की पूरी कभी मुद्दत नहीं होती
 
अब उसकी कोई बात भी दिल को नहीं भाती
अब उसकी किसी बात में शिद्दत नही होती
 
ये दिल है कि जो टूट गया, टूट गया बस
शीशे की किसी तौर मरम्मत नहीं होती
 
फिर कौन तुझे मानता यकता-ए-ज़माना2
अशाअर में तेरे जो ये जिद्दत नहीं होती

1-संसार में अद्वितीय2-अनोखापन