भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:49, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जय जय-जय घनस्याम सम सोभा तन घनस्याम।
राधा रानी दामिनी जा सँग लसत मुदाम॥

मंजुल मन मोहत सदा बरसत प्रेम अथोर।
जोहि जतन जोगादि जेहि नाचत मुनि मन मोर॥

जुगल जुगल पद जलज मैं परम प्रेमघन प्रेम।
हरन सकल कलि कलुष कुल जाचत निश्चल नेम॥