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यह भी क्या बात हुई / शरद कोकास
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यहाँ हर कोई दुखी
कोई रोज़मर्रा की ज़रूरतों को लेकर
कोई जीने के तौर-तरीकों को लेकर
पैदल यात्री
साइकल देख दुखी
साइकल सवार
स्कूटर कार देख
ग़रीब दुखी अपनी ग़रीबी से
बेरोज़गार दुखी बेरोज़गारी से
वह दुखी उससे
उससे दुखी वह
हर कोई दुखी
हर आदमी दुखी
यह भी क्या बात हुई
जहाँ चीखना चाहिए आदमी को
आदमी डरता है
और खामखाँ दुखी होता है।
-1994