भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहर में पड़ोसी / शरद कोकास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 1 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह=हमसे त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाम से नहीं
स्कूटर से पहचानता है वह अपने पड़ोसी को
उसके बच्चों की बोली
स्त्रियों की वेशभूषा
घर से आती आवाज़ों से
उसकी जाति का अनुमान लगाता है
आते-जाते खुले दरवाज़ों से भीतर की झलक पाकर
उसकी हैसियत का अन्दाज़ लगाता है

उसकी रसोई से आती सब्जी की महक
उसके फेंके गए कूड़े-कचरे, खाली डिब्बों से
बालकनी में सूखते कपड़ों से
तय करता है उसके संस्कार

उलझे हुए इंसानी रिश्तों का ढेर है शहर
जहाँ वह खुद का सिरा खोज नहीं पाता
सोने से पहले सोचता है
कल ज़रूर मिलेगा पड़ोसी से
दिन उसे रोज़ी के जुए में जोत देता है

छुट्टी के दिन वह तानकर सोता है
किसी अजनबी द्वारा
पड़ोसी का पता पूछे जाने पर शर्मिन्दा होता है।

-1997