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बातचीत की ।
इन्हीं के भरोसे क्या-क्या नहीं सहा
छू ली है एक नहीं सभी , एक-एक इन्तहा ।
एक कसम क़सम जीने की
ढेर उलझनें
दोनों गर ग़र नहीं रहे
बात क्या बने ।
देखता रहा सब कुछ सामने ढहा
मगर किसी के कभी किसी का चरण नहीं गहा ।
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