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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह= पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
आज तिरा सिरमौर बना है
फिर से चांद चाँद को रोटी कहकरआंगन आँगन में दो कौर बना है
बंद न कर दिल के दरवाज़े
तेरी-मेरी बात छिड़ी तो
फिर किस्सा क़िस्सा कुछ और बना है
झगड़ा है कैसा आख़िर, जब
दिल्ली-सा लाहौर बना है
''{  (मासिक वर्तमान साहित्य, अगस्त 2009}''</poem>)
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