भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
हिम गलेगा निश्चय मानो,
'''मौन भी टूटेगा,'''
असंवादी जीवन का पहरा
'''कभी तो छूटेगा।'''
आशा का मन में ये उजाला
'''किरनें बन फूटेगा।'''
हिम गलेगा निश्चय मानो,
'''मौन भी टूटेगा रूठेगा ।'''