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आसमानों का असर बाक़ी रहे
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कोई वादा तलब नहीं होता
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बेअसर होती हैं दुआएं मेरी
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जब मैं होता हूं, रब नहीं होता 
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वो निभाता है बहुत दूर तलक
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जिसको रिश्तों का ढब नहीं होता
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पहले मिलते थे दोस्तों से गले
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ये तमाशा भी अब नहीं होता
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उसके मिलने पे' सहम जाता हूं
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उससे मिलना भी कब नहीं होता 
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20:16, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण

शिरीष कुमार मौर्य
Shirishkumarmorya.jpg
जन्म 13 दिसंबर 1973
निधन
उपनाम
जन्म स्थान नागपुर
कुछ प्रमुख कृतियाँ
पहला कदम, शब्दों के झुरमुट में,धरती जानती है(इजरायली कवि येहूदा आमीखाई की कविताओं का अनुवाद - संवाद प्रकाशन)
विविध
1994 में एक काव्य-पुस्तिका तथा 2004 में पहला कविता-संग्रह प्रकाशित। दूसरा संग्रह 'पृथ्वी पर एक जगह' 2009 में। 2004 में प्रथम अंकुर मिश्र पुरस्‍कार तथा 2009 में लक्ष्‍मण प्रसाद मंडलोई सम्‍मान। तीसरा संग्रह 'जैसे कोई सुनता हो मुझे' शीघ्र प्रकाश्‍य।
जीवन परिचय
शिरीष कुमार मौर्य / परिचय
कविता कोश पता
www.kavitakosh.org/{{{shorturl}}}



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ग़ज़लें

एक

आसमानों का असर बाक़ी रहे छीन ले परवाज़, पर बाक़ी रहे

टूटते कांधों पे' सर बाक़ी रहे जाता रहे मकान घर बाक़ी रहे

सोख डाला हर समंदर वक़् त ने सीप में थे जो गुहर बाक़ी रहे

मैं भले ही रुक गया थक-हारकर पांव में मेरे सफ़र बाक़ी रहे

टूट जाएं मेरी तामीरें मगर मेरे हाथों में हुनर बाक़ी रहे

दुश्मनों ने तो हमें अपना लिया दोस्त के सीने में डर बाक़ी रहे

भूल जाए अब ज़ेहन हर बात को एक छोटी-सी बहर बाक़ी रहे

दोस्ती पल में सिमट कर खो गई और झगड़े उम्र भर बाक़ी रहे

मिट गए जो ख़ास थे,मशहूर थे और अदने-से बशर बाक़ी रहे

दो

कोई वादा तलब नहीं होता पहले होता था अब नहीं होता

वो जो करते हैं सैकड़ों बातें उनका कोई सबब नहीं होता

बेअसर होती हैं दुआएं मेरी जब मैं होता हूं, रब नहीं होता

वो निभाता है बहुत दूर तलक जिसको रिश्तों का ढब नहीं होता

पहले मिलते थे दोस्तों से गले ये तमाशा भी अब नहीं होता

उसके मिलने पे' सहम जाता हूं उससे मिलना भी कब नहीं होता