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"विनयावली() / तुलसीदास / पृष्ठ 2" के अवतरणों में अंतर

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'''पद संख्या 19 तथा 20'''
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(19)
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श्री हरनि पाप, त्रिबिधि ताप सुमिरत सुरसरित।
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बिलसित महि कल्प-बेलि मुद-मनोरथ -फरित।।
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सोहत ससि धवल धार सुधा-सलिल-भरित।
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बिमलतर तरंग लसत रघुबरके-से चरित।।
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तो बिनु जगदंब गंग कलिजुग का करित?
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घोर भव अपार सिंधु तुलसी किमि तरित।।
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(20)
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श्री ईस-सीस बससि, त्रिपथ लससि, नभ-पाताल-धरनि।
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सुर-नर-मुनि-नाग-सिद्ध-सुजन मंगल-करनि।।
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देखत दुख-दोष-दुरित-दाह -दादिद-दरनि।
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सगर-सुवन साँसति-समनि, जलनिधि जल भरनि।।
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महिमाकी अवधि करसि बहु, बिधि हरनि।
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तुलसी करू बानि बिमल, बिमल-बारि बरनि।।
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18:54, 30 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण