भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेल्यौ उर आँनद अपार मैन सोवत हीं / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=गुंजरन लागीं भौंर-भीरैं के…)
(कोई अंतर नहीं)

08:59, 28 जून 2011 का अवतरण

मनहरन घनाक्षरी
(वसंत-शोभा का अनुभव करते हुए जाग्रत होने का वर्णन)

मेल्यौ उर आनँद अपार मैन सोवत हीं, पाइ सुधि सौरभ समीरन-मिलन की ।
नेह के झकोरन हलाइ उर दीन्हौं, लखि सुखमा लवंग लतिकान के हिलन की ॥
स्वपन भयौ धौं किधौं साँची करतार! इमि, समुझत रीति लखि अंग-सिथिलन की ।
खिलि गए लोचन हमारे इक बार सुनि, आहट गुलाबन के अखिल खिलन की ॥३॥