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"संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर
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दोहा
(भ्रमरावली के गुंजार से संभ्रम-निवारण का वर्णन)
संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ, रह्यौ नहीं कछु ग्यान ।
मधुकरीन-मुख ता समै, परयौ सबद यह कान ॥६॥