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मत्तगयंद सवैया
(ऋतुराज के स्वागतार्थ वन के सुसज्जित करने का वर्णन)

बायु बहारि-बहारि रहे छिति, बीथीं सुगंधनि जातीं सिँचाई ।
त्यौं मधुमाँते-मलिंद सबै, जय के करषान रहे कछु गाई ॥
मंगल-पाठ पढ़ैं ’द्विजदेव’ सबै बिधि सौं सुखमा उपजाई ।
साजि रहे सब साज घने, बन मैं ऋतुराज की जानि अवाई ॥११॥