भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नहीं नव अंकुर ए सरसात / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }}{{KKAnthologyBasant}} {{KKPageNavigation |पीछे=कदंब प्रसूनन सौं सर…)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:09, 29 जून 2011 के समय का अवतरण

मौक्तिकदाम
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)

नहीं नव अंकुर ए सरसात । धरयौ छिति हूँ कछु कंटक गात ॥
रहे नहिँ ओस के बुंद बिराजि । प्रसेद के बिंदु रही छिति छाजि ॥२२॥