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मौक्तिकदाम
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)
पलास-प्रसून किधौं नख-दाग । किधौं प्रगट्यौ छिति कौं अनुराग ॥
छए चहुँघाँ छबि-मंजु पराग । जिन्हैं लखि भाजि गयौ रबि-राग ॥२३॥