भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"श्री राधा की कबहुँ हरि / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=खेलि-रास हरि दुरैं, बहुरि बन…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:09, 6 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
दोहा
(संक्षिप्ततया नायक-वर्णन)
श्री राधा की कबहुँ हरि, जोवैं बन मैं बाट ।
लखि राधै हरि संभ्रमै, बर-अंगन कौ ठाट ॥४८॥