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सन् 1900 ई0 के लगभग [[मासाओका शिकि]] ( 1867-1902) ने विशिष्ट जापानी छंद “होक्कु” को हाइकु (Haiku) का नाम दिया आज जापान में लाखों लोग इस छन्द में रचना करते हैं । भारत की अनेक भाषाओं के साथ -साथ हाइकु विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में लिखा और पढ़ा जा रहा है । भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि को यह कविवर [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] का जापानी तोहफा है।  
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यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिए सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात किया गया है। एक शताब्दी पूर्व सन् 1900 ई0 के लगभग जापानी साहित्यकार [[मासाओका शिकि]] ( 1867-1902) ने विशिष्ट जापानी छंद “होक्कु” को एक नया नाम हाइकु (Haiku) दिया जिसने लोकप्रियता के बड़े मानकों को प्राप्त किया। आज जापान में लाखों लोग इस छन्द में रचना करते हैं । भारत की अनेक भाषाओं के साथ -साथ हाइकु विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में लिखा और पढ़ा जा रहा है । भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि को यह कविवर [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] का जापानी तोहफा है।  
 
==नवीनतम विधा है हाइकु ==
 
==नवीनतम विधा है हाइकु ==
यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिये सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात किया गया है।  
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यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिए सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात् किया गया है।  
* हिन्दी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में से एक नवीनतम विधा है हाइकू हाँलांकि यह विधा लगभग एक शताब्दी पूर्व सन् 1919 में कविवर [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के द्वारा अपनी जापान यात्रा से लौटने के पश्चात उनके ‘जापान यात्री’ में प्रसिद्ध जापानी हाइकु कवि [[मात्सुओ बाशो]] की हाइकु कविताओं के [[हाइकु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर| बंगला भाषा में अनुवाद]] के रूप में सर्वप्रथम हिन्दुस्तानी धरती पर अवतरित हुई परन्तु इतने पहले आने के बावजूद लंबे समय तक यह साहित्यिक विधा हिन्दुस्तानी साहित्यिक जगत में अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बना सकी।  इस प्रकार [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के द्वारा जापानी हाइकु कविताओं के [[हाइकु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर| बंगला भाषा में अनुवाद]]  के माध्यम से भारतीय साहित्य उर्वरा भूमि में हाइकु का बीजारोपण तो हो गया परन्तु इस बीज के अंकुरित होकर विकसित होने के लिये जिस अनुकूल वातावरण की आवश्यकता थी वह श्रदेय [[अज्ञेय]] के माध्यम से मिला।
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* हिन्दी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में से एक नवीनतम विधा है हाइकु हालाँकि यह विधा लगभग एक शताब्दी पूर्व सन् 1919 में कविवर [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के द्वारा अपनी जापान यात्रा से लौटने के पश्चात उनके ‘जापान यात्री’ में प्रसिद्ध जापानी हाइकु कवि [[मात्सुओ बाशो]] की हाइकु कविताओं के [[हाइकु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर| बांग्ला भाषा में अनुवाद]] के रूप में सर्वप्रथम हिन्दुस्तानी धरती पर अवतरित हुई; परन्तु इतने पहले आने के बावजूद लम्बे समय तक यह साहित्यिक विधा हिन्दुस्तानी साहित्यिक जगत् में अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बना सकी।  इस प्रकार [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]] के द्वारा जापानी हाइकु कविताओं के [[हाइकु / रवीन्द्रनाथ ठाकुर| बंगला भाषा में अनुवाद]]  के माध्यम से भारतीय साहित्य उर्वरा भूमि में हाइकु का बीजारोपण तो हो गया ;परन्तु इस बीज के अंकुरित होकर विकसित होने के लिए जिस अनुकूल वातावरण की आवश्यकता थी ,वह श्रद्धेय [[अज्ञेय]] के माध्यम से मिला।
*हिन्दी भाषा में [[हाइकु / अज्ञेय| हाइकु की प्रथम चर्चा]] का श्रेय [[अज्ञेय]] को दिया जाता है, उन्होंने छठे दशक (१९६०) में [[अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय|अरी ओ करुणा प्रभामय]] (१९५९) में अनेक हाइकुनुमा छोटी कविताएँ लिखी हैं जो [[हाइकु]] के बहुत निकट हैं। जिन पर अब भी लगातार शोध जारी है।
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*हिन्दी भाषा में [[हाइकु / अज्ञेय| हाइकु की प्रथम चर्चा]] का श्रेय [[अज्ञेय]] को दिया जाता है, उन्होंने छठे दशक (1960) में [[अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय|अरी ओ करुणा प्रभामय]] (1959) में अनेक हाइकुनुमा छोटी कविताएँ लिखी हैं ;जो [[हाइकु]] के बहुत निकट हैं। जिन पर अब भी लगातार शोध जारी है।
 
*प्रो० डा० [[सत्यभूषण वर्मा]] ने हिन्दी साहित्य संसार को सबसे पहले हाइकु से परिचित कराया तथा अन्तर्देशीय पत्र प्रकाशित कर हाइकु को चर्चित किया।
 
*प्रो० डा० [[सत्यभूषण वर्मा]] ने हिन्दी साहित्य संसार को सबसे पहले हाइकु से परिचित कराया तथा अन्तर्देशीय पत्र प्रकाशित कर हाइकु को चर्चित किया।
* वर्तमान में संसार भर में फैले हिंदुस्तानियों की इन्टरनेट पर फैली रचनाओं के माध्यम से  यह विधा हिन्दुस्तानी कविता जगत में ही नही वरन् विभिन्न देशों में हिन्दी काव्य -जगत् में  प्रमुखता से अपना स्थान बना रही है।
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* वर्तमान में संसार भर में फैले हिंदुस्तानियों की इन्टरनेट पर फैली रचनाओं के माध्यम से  यह विधा हिन्दुस्तानी कविता -जगत में ही नही वरन् विभिन्न देशों में हिन्दी काव्य -जगत् में  प्रमुखता से अपना स्थान बना रही है।
==इस विधा का काब्य अनुशासन==  
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कुछ लोग इस विधा की तुलना हिन्दी काव्य विधा [[त्रिवेणी]] से करते हैं। हाइकु और [[त्रिवेणी]] में केवल इतनी समानता है कि दोनों में मात्र तीन पंक्तियां होती है इन तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त अधिक इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है।  हाइकु के अनुरूप [[त्रिवेणी]] भी तीन पंक्तियों वाली कविता है, यह माना जाता है कि [[त्रिवेणी]] विधा को [[गुलज़ार]] साहब ने विकसित किया।  [[त्रिवेणी / गुलज़ार| त्रिवेणी]] की रचना का मूल प्रेरणा स्रोत भी जापनी काव्य ही कहा जाता है।
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==इस विधा का काव्य अनुशासन==  
इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुये डॉ0 [[जगदीश व्योम]] ने बताया  है:-
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कुछ लोग इस विधा की तुलना हिन्दी काव्य विधा [[त्रिवेणी]] से करते हैं। हाइकु और [[त्रिवेणी]] में केवल इतनी समानता है कि दोनों में केवल तीन पंक्तियाँ होती है तीन पंक्तियों के साम्य के अतिरिक्त इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है।  
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इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुए डॉ0 [[जगदीश व्योम]] ने बताया  है:-
 
* हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7  और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।  
 
* हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7  और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।  
 
* संयुक्त वर्ण भी  एक ही वर्ण गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन वर्ण हैं-(सु-1, ग-1, न्ध-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।  
 
* संयुक्त वर्ण भी  एक ही वर्ण गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन वर्ण हैं-(सु-1, ग-1, न्ध-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।  
 
* अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।  
 
* अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।  
 
* हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।
 
* हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।
* इस संबंध में  डा० ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों  का प्रचलन है अतः उपर्युक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गयी पंक्तियों को हाइकु न कहकर मुक्त छंद अथवा [[क्षणिका]] ही कहना चाहिये।
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* इस संबंध में  डा० ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों  का प्रचलन है; अतः उपर्युक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गई पंक्तियों को हाइकु न कहकर मुक्त छंद अथवा [[क्षणिका]] ही कहना चाहिए।
* वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गंभीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकु कहकर संबोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कहा जायेगा।
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* वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गम्भीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकु कहकर सम्बोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कहा जाएगा।
 
प्रकृति के भावप्रवण चित्रण हेतु हाइकु एक सशक्त विधा है ।
 
प्रकृति के भावप्रवण चित्रण हेतु हाइकु एक सशक्त विधा है ।
  
 
==[[ताँका]]==  
 
==[[ताँका]]==  
ताँका  जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य शैली है । इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुये [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] ने बताया  है:-  
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ताँका  जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य शैली है । इस जापानी विधा के अनुशासन से परिचित कराते हुए [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] ने बताया  है:-  
 
* इस शैली को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी  के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी  हुआ करते थे । [[हाइकु]] का उद्भव इसी से हुआ । इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।
 
* इस शैली को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी  के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी  हुआ करते थे । [[हाइकु]] का उद्भव इसी से हुआ । इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।
 
* एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग  7+7 की  पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था । फिर पूर्ववर्ती 7+7 को आधार बनाकर  अगली शृंखला में 5+7+5 यह क्रम चलता;फिर इसके आधार पर अगली शृंखला 7+7 की रचना होती थी ।  
 
* एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग  7+7 की  पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था । फिर पूर्ववर्ती 7+7 को आधार बनाकर  अगली शृंखला में 5+7+5 यह क्रम चलता;फिर इसके आधार पर अगली शृंखला 7+7 की रचना होती थी ।  
 
* इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था । इस प्रकार की  शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह  संख्या 100 तक भी पहुँच जाती थी ।
 
* इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था । इस प्रकार की  शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह  संख्या 100 तक भी पहुँच जाती थी ।
* [[ताँका]] पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7= 31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव  है ।
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* [[ताँका]] पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7= 31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव  है ।
 
* इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है । इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है ।
 
* इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है । इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है ।
 
*ताँका -शब्द का अर्थ है लघुगीत । लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती ।
 
*ताँका -शब्द का अर्थ है लघुगीत । लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती ।
*साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।
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*साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है ;अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।
* [[सुधा गुप्ता ]] का सात छेद वाली मैं और [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] का झरे हरसिंगार चर्चित ताँका -संग्रह हैं
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* [[सुधा गुप्ता ]] का '''सात छेद वाली मैं''' और [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] का '''झरे हरसिंगार'''  चर्चित ताँका -संग्रह हैं
  
 
==[[चोका]]==  
 
==[[चोका]]==  
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5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि  समापन करते समय  इस क्रम के अन्त में  7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । इस  अन्त में जोड़े जाने वाले ताँका से पहले कविता की लम्बाई की सीमा नहीं है । इस कविता में मन के पूरे भाव आ सकते हैं ।
 
5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि  समापन करते समय  इस क्रम के अन्त में  7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । इस  अन्त में जोड़े जाने वाले ताँका से पहले कविता की लम्बाई की सीमा नहीं है । इस कविता में मन के पूरे भाव आ सकते हैं ।
 
* इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या [ ODD] यानी 25-27-29-31……इत्यादि  ही होता है  ।
 
* इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या [ ODD] यानी 25-27-29-31……इत्यादि  ही होता है  ।
*डॉ0 डॉ [[सुधा गुप्ता ]] जी ने स्वतन्त्र रूप से '[[ओक भर किरनें / सुधा गुप्ता|ओक भर किरनें]] ' चोका रचनाओं के द्वारा इस शैली के रचनाकर्म की ओर अनेक कवियों को प्रोत्साहित किया । मिले किनारे'[[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]] और  [[ हरदीप कौर सन्धु]] का [[ चोका ]] एवं [[ताँका]] का युगल संकलन है । उजास साथ रखना एक मात्र सम्पादित  [[ चोका]] -संगह है; जिसका सम्पादन [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]], [[ भावना कुँअर ]]  और  [[ हरदीप कौर सन्धु]] ने किया है ।
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*डॉ0 डॉ [[सुधा गुप्ता ]] जी ने स्वतन्त्र रूप से '[[ओक भर किरनें / सुधा गुप्ता|ओक भर किरनें]] '[[ भावना कुँअर ]] ने '''परिन्दे कब लौटे''', चोका रचनाओं के द्वारा इस शैली के रचनाकर्म की ओर अनेक कवियों को प्रोत्साहित किया । मिले किनारे'[[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]] और  [[ हरदीप कौर सन्धु]] का [[ चोका ]] एवं [[ताँका]] का युगल संकलन है । उजास साथ रखना एक मात्र सम्पादित  [[ चोका]] -संग्रह है; जिसका सम्पादन [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]], [[ भावना कुँअर ]]  और  [[ हरदीप कौर सन्धु]] ने किया है ।
  
 
==हाइकु का चित्रात्मक निरूपण है [[कविता कोश के मानक| हाइगा]]==
 
==हाइकु का चित्रात्मक निरूपण है [[कविता कोश के मानक| हाइगा]]==
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* वास्तव में [[कविता कोश के मानक| हाइगा]] जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-कविता’ ।
 
* वास्तव में [[कविता कोश के मानक| हाइगा]] जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-कविता’ ।
 
*[[कविता कोश के मानक| हाइगा]] दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = कविता या हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला)  
 
*[[कविता कोश के मानक| हाइगा]] दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = कविता या हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला)  
*[[कविता कोश के मानक| हाइगा]] की शुरुआत १७ वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था |  
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*[[कविता कोश के मानक| हाइगा]] की शुरुआत 17 वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था |  
* फ़िलहाल [[कविता कोश के मानक|कविता कोश में रचनाओं को जोडे जाने के संबंध में अपनाये जा रहे मानकों]] के अनुरूप इस कोश में चित्रात्मक रचनाओं (जैसे कि [[कविता कोश के मानक| हाइगा]] या चित्र पर लिखे शे’र और ग़ज़ल) इत्यादि का संकलन नहीं किया जा रहा है।
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* फ़िलहाल [[कविता कोश के मानक|कविता कोश में रचनाओं को जोडे जाने के संबंध में अपनाये जा रहे मानकों]] के अनुरूप इस कोश में चित्रात्मक रचनाओं (जैसे कि [[कविता कोश के मानक| हाइगा]] या चित्र पर लिखे शे’र और ग़ज़ल) इत्यादि का संकलन नहीं किया जा रहा है। ॠता शेखर 'मधु' ने 2013 में प्रथम हाइगा-संग्रह सम्पादित किया।
  
 
==पुस्तकें / शोध- कार्य ==
 
==पुस्तकें / शोध- कार्य ==
* ''हाइकु-१९८९'' और ''हाइकु-१९९९'' के बाद [[कमलेश भट्ट 'कमल' ]] द्वारा संपादित हाइकु का तीसरा संकलन '"[[हाइकु / कमलेश भट्ट 'कमल'|मे हाइकु-2009]]'" है।इसी क्रम में , चन्दनमन [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] और [[ भावना कुँअर]] तथा यादों के पाखी [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] ,[[ भावना कुँअर ]]  और [[ हरदीप सन्धु]] सम्पादित संकलन हैं ।एकल संकलन में, 1 खुशबू का सफ़र, 1986,2 – लकड़ी का सपना,  9 जनवरी-1989,3- तरु देवता, पाखी पुरोहित, 25 अगस्त-1997,4 – कूकी जो पिकी, अगस्त-2000,5 – चाँदी के अरघे में , नवम्बर-2000, 6- धूप से गपशप, 2002,7– बाबुना जो आएगी, मार्च,2004,8- आ बैठी गीत- परी,  मार्च,2004
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* ''हाइकु-1989'' और ''हाइकु-1999'' के बाद [[कमलेश भट्ट 'कमल' ]] द्वारा संपादित हाइकु का तीसरा संकलन '"[[हाइकु / कमलेश भट्ट 'कमल'|हाइकु-2009]]'" है।इसी क्रम में , चन्दनमन [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] और [[ भावना कुँअर]] तथा यादों के पाखी [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] ,[[ भावना कुँअर ]]  और [[ हरदीप सन्धु]] सम्पादित संकलन हैं ।एकल संकलन में, 1 खुशबू का सफ़र, 1986,2 – लकड़ी का सपना,  9 जनवरी-1989,3- तरु देवता, पाखी पुरोहित, 25 अगस्त-1997,4 – कूकी जो पिकी, अगस्त-2000,5 – चाँदी के अरघे में , नवम्बर-2000, 6- धूप से गपशप, 2002,7– बाबुना जो आएगी, मार्च,2004,8- आ बैठी गीत- परी,  मार्च,2004,9- अकेला था समय,  मार्च,2004,10- चुलबुली रात में, अप्रैल , 2006,11- पानी माँगता देश(सेन्र्यू-सन्ग्रह ), अप्रैल-2006,12- कोरी माटी के दीये-2009;13-खोई हरी टेकरी –जनवरी -2013 [[ सुधा गुप्ता]],तारों की चूनर ,धूप के खरगोश, [[भावना कुँअर]],अमलतास [[ कमलेश भट्ट 'कमल']], मेरे सात जनम,माटी की नाव [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']], ख्वाबों की खुशबू [[ हरदीप कौर सन्धु ]], भोर की मुस्कान [[ रचना श्रीवास्तव]],चाँदी की सीपियाँ [[अनिता ललित]],ओस नहाई भोर [[ज्योत्स्ना शर्मा]] प्रमुख हैं ।
9- अकेला था समय,  मार्च,2004,10- चुलबुली रात में, अप्रैल , 2006,11- पानी माँगता देश(सेन्र्यू-सन्ग्रह ), , अप्रैल , 2006,12- कोरी माटी के दीये ,2009
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* मूलतः इस जापानी साहित्य की विधा हाइकु पर '''करुणेश भट्ट''' ने लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध कार्य भी किया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से 'मेरे सात जनम' [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]] पर राजेश ढल ने एम फिल की है । ''''डॉ सुधा गुप्ता के हाइकु में प्रकृति'(रागात्मक मनोभूमि:संचरण व संचयन)शोध ग्रन्थ''',[[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]] और [[भावना कुँअर]] एवं '''हाइकु काव्य: शिल्प  एवं अनुभूति'''-सम्पादक [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]] और [[भावना कुँअर]] प्रमुख ग्रन्थ हैं।
13-खोई हरी टेकरी –जनवरी -2013 [[ सुधा गुप्ता]], तारों की चूनर [[ भावना कुँअर]],अमलतास [[ कमलेश भट्ट 'कमल']], मेरे सात जनम [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']],धूप के खरगोश [[ भावना कुँअर]], माटी की नाव [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']], ख्वाबों की खुशबू [[ हरदीप कौर सन्धु ]], भोर की मुस्कान [[ रचना श्रीवास्तव]] प्रमुख हैं ।
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* मूलतः इस जापानी साहित्य की विधा हाइकु पर '''करुणेश भट्ट''' ने लखनऊ विश्वविद्यालय में शोध कार्य भी किया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से 'मेरे सात जनम' [[ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]] पर राजेश ढल ने एम फिल की है ।
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==हिन्दी में हाइकु रचने वालों की सूची ==
 
==हिन्दी में हाइकु रचने वालों की सूची ==
* हिन्दी में हाइकु को गम्भीरता के साथ लेने वालों और हाइकुकारों की सूची में- प्रोफेसर [[सत्यभूषण वर्मा]] , [[गोपालदास "नीरज"]],[[शिव बहादुर सिंह भदौरिया]] , भगवत शरण अग्रवाल, [[सरस्वती माथुर]], [[सुभाष नीरव]] ,  [[सुधा गुप्ता ]], डा० शैल रस्तोगी ,[[कमलेश भट्ट 'कमल']], [[ जगदीश व्योम]], [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]], [[कुँअर बेचैन]] , [[यदि कोई पूछे तो / मासाओका शिकि|अंजली देवधर]], [[रमा द्विवेदी]] ,डॉ उर्मिला अग्रवाल ,[[कृष्ण शलभ]] , [[ऋतु पल्लवी]] डॉ० रामनारायण पटेल ‘राम',प्रो० आदित्य प्रताप सिंह ,विद्या बिन्दु सिंह, राजेन जयपुरिया,  [[पवन कुमार]], [[भावना कुँअर]], , [[अशोक कुमार शुक्ला]],  रेखा रोहतगी, कमला निखुर्पा,  [[जेन्नी शबनम]] , पारस दासोत,  मोतीलाल जोतवाणी, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, नवल किशोर [[नवल]], [[अनिता ललित]] , [[अनुपमा त्रिपाठी]], [[ शशि पुरवार]] आदि नाम प्रमुख नाम है। जिसमें से अनेक हाइकुकारों के हाइकु तथा अन्य रचनाऐं कविताकोश में भी उपलब्ध हैं।
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* हिन्दी में हाइकु को गम्भीरता के साथ लेने वालों और हाइकुकारों की सूची में- प्रोफेसर [[सत्यभूषण वर्मा]] , [[गोपालदास "नीरज"]],[[शिव बहादुर सिंह भदौरिया]] , भगवत शरण अग्रवाल, [[सुधा गुप्ता ]], डा० शैल रस्तोगी ,[[कमलेश भट्ट 'कमल']], [[ जगदीश व्योम]], [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ]], [[कुँअर बेचैन]] , [[यदि कोई पूछे तो / मासाओका शिकि|अंजली देवधर]] , [[कुँवर दिनेश]],डॉ उर्मिला अग्रवाल ,[[कृष्ण शलभ]] , डॉ० रामनारायण पटेल ‘राम',प्रो० आदित्य प्रताप सिंह ,विद्या बिन्दु सिंह, राजेन जयपुरिया,  [[पवन कुमार]], [[भावना कुँअर]], ,[[ऋतु पल्लवी]] ,[[सरस्वती माथुर]], [[सुभाष नीरव]] , [[रमा द्विवेदी]] ,[[अशोक कुमार शुक्ला]],  रेखा रोहतगी, कमला निखुर्पा,  [[जेन्नी शबनम]] , पारस दासोत,  मोतीलाल जोतवाणी, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, नवल किशोर [[नवल]], [[ रचना श्रीवास्तव]], [[अनिता ललित]] ,[[ज्योत्स्ना शर्मा]], [[अनुपमा त्रिपाठी]], [[ शशि पुरवार]] आदि नाम प्रमुख नाम है। जिसमें से अनेक हाइकुकारों के हाइकु तथा अन्य रचनाएँ कविताकोश में भी उपलब्ध हैं।
  
 
==अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाइकु==  
 
==अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाइकु==  
*अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्टेरनेट के माध्यम से हाइकु लिखने वालों में  [[भावना कुँअर]],(आस्ट्रेलिया)  [[सुदर्शन प्रियदर्शिनी]], (यू.एस.ए.) , [[पूर्णिमा वर्मन]], (संयुक्त अरब अमीरात) ,[[अनूप भार्गव]] , [[रचना श्रीवास्तव]],[[ शशि पाधा]],[[सुधा ओम ढींगरा]], [[सारिका सक्सेना[[, (यू.एस.ए.) , जैनन प्रसाद, (फिजी) , शकुन्तला तलवार, (यू.एस.ए.) , प्रो० अश्विन गाँधी, (अमेरिका), अमिता कौण्डल, हरदीप कौर सन्धु,[[ हरिहर झा ]] (आस्ट्रेलिया), स्वाति भालोटिया (इंग्लैण्ड), रजनी भार्गव (अमेरिका) [[रेखा राजवंशी]] (आस्ट्रेलिया) आदि नाम प्रमुख नाम है।
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*अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्टेरनेट के माध्यम से हाइकु लिखने वालों में  [[भावना कुँअर]],(आस्ट्रेलिया) , [[पूर्णिमा वर्मन]], (संयुक्त अरब अमीरात) ,[[अनूप भार्गव]] , [[रचना श्रीवास्तव]],[[ शशि पाधा]],[[सुधा ओम ढींगरा]], [[सुदर्शन प्रियदर्शिनी]], ,[[सारिका सक्सेना]], (यू.एस.ए.) , जैनन प्रसाद, (फिजी) , शकुन्तला तलवार, (यू.एस.ए.), प्रो० अश्विन गाँधी, (अमेरिका), अमिता कौण्डल, हरदीप कौर सन्धु,[[ हरिहर झा ]] (आस्ट्रेलिया), स्वाति भालोटिया (इंग्लैण्ड), रजनी भार्गव (अमेरिका) [[रेखा राजवंशी]] (आस्ट्रेलिया) आदि नाम प्रमुख नाम है।
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14:25, 23 मार्च 2016 के समय का अवतरण

यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिए सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात किया गया है। एक शताब्दी पूर्व सन् 1900 ई0 के लगभग जापानी साहित्यकार मासाओका शिकि ( 1867-1902) ने विशिष्ट जापानी छंद “होक्कु” को एक नया नाम हाइकु (Haiku) दिया जिसने लोकप्रियता के बड़े मानकों को प्राप्त किया। आज जापान में लाखों लोग इस छन्द में रचना करते हैं । भारत की अनेक भाषाओं के साथ -साथ हाइकु विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में लिखा और पढ़ा जा रहा है । भारतीय साहित्य की उर्वरा भूमि को यह कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जापानी तोहफा है।

नवीनतम विधा है हाइकु

यह सर्वमान्य तथ्य है कि हिन्दी साहित्य और भारतीय कला जगत रचनात्मकता के लिए सीमा के किसी बंधन को नहीं मानता । भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही प्रवासियों द्वारा कला के विभिन्न स्वरूपों को आत्मसात् किया गया है।

  • हिन्दी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में से एक नवीनतम विधा है हाइकु । हालाँकि यह विधा लगभग एक शताब्दी पूर्व सन् 1919 में कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुर के द्वारा अपनी जापान यात्रा से लौटने के पश्चात उनके ‘जापान यात्री’ में प्रसिद्ध जापानी हाइकु कवि मात्सुओ बाशो की हाइकु कविताओं के बांग्ला भाषा में अनुवाद के रूप में सर्वप्रथम हिन्दुस्तानी धरती पर अवतरित हुई; परन्तु इतने पहले आने के बावजूद लम्बे समय तक यह साहित्यिक विधा हिन्दुस्तानी साहित्यिक जगत् में अपनी कोई विशेष पहचान नहीं बना सकी। इस प्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर के द्वारा जापानी हाइकु कविताओं के बंगला भाषा में अनुवाद के माध्यम से भारतीय साहित्य उर्वरा भूमि में हाइकु का बीजारोपण तो हो गया ;परन्तु इस बीज के अंकुरित होकर विकसित होने के लिए जिस अनुकूल वातावरण की आवश्यकता थी ,वह श्रद्धेय अज्ञेय के माध्यम से मिला।
  • हिन्दी भाषा में हाइकु की प्रथम चर्चा का श्रेय अज्ञेय को दिया जाता है, उन्होंने छठे दशक (1960) में अरी ओ करुणा प्रभामय (1959) में अनेक हाइकुनुमा छोटी कविताएँ लिखी हैं ;जो हाइकु के बहुत निकट हैं। जिन पर अब भी लगातार शोध जारी है।
  • प्रो० डा० सत्यभूषण वर्मा ने हिन्दी साहित्य संसार को सबसे पहले हाइकु से परिचित कराया तथा अन्तर्देशीय पत्र प्रकाशित कर हाइकु को चर्चित किया।
  • वर्तमान में संसार भर में फैले हिंदुस्तानियों की इन्टरनेट पर फैली रचनाओं के माध्यम से यह विधा हिन्दुस्तानी कविता -जगत में ही नही वरन् विभिन्न देशों में हिन्दी काव्य -जगत् में प्रमुखता से अपना स्थान बना रही है।

इस विधा का काव्य अनुशासन

कुछ लोग इस विधा की तुलना हिन्दी काव्य विधा त्रिवेणी से करते हैं। हाइकु और त्रिवेणी में केवल इतनी समानता है कि दोनों में केवल तीन पंक्तियाँ होती है । तीन पंक्तियों के साम्य के अतिरिक्त इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है। इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुए डॉ0 जगदीश व्योम ने बताया है:-

  • हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7 और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।
  • संयुक्त वर्ण भी एक ही वर्ण गिना जाता है, जैसे (सुगन्ध) शब्द में तीन वर्ण हैं-(सु-1, ग-1, न्ध-1)। तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात् एक ही वाक्य को 5,7,5 के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।
  • अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को 5-7-5 वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर गलत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है।
  • हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।
  • इस संबंध में डा० ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों का प्रचलन है; अतः उपर्युक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गई पंक्तियों को हाइकु न कहकर मुक्त छंद अथवा क्षणिका ही कहना चाहिए।
  • वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गम्भीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकु कहकर सम्बोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कहा जाएगा।

प्रकृति के भावप्रवण चित्रण हेतु हाइकु एक सशक्त विधा है ।

ताँका

ताँका जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य शैली है । इस जापानी विधा के अनुशासन से परिचित कराते हुए रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने बताया है:-

  • इस शैली को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे । हाइकु का उद्भव इसी से हुआ । इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।
  • एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग 7+7 की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था । फिर पूर्ववर्ती 7+7 को आधार बनाकर अगली शृंखला में 5+7+5 यह क्रम चलता;फिर इसके आधार पर अगली शृंखला 7+7 की रचना होती थी ।
  • इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था । इस प्रकार की शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह संख्या 100 तक भी पहुँच जाती थी ।
  • ताँका पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7= 31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है ।
  • इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है । इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है ।
  • ताँका -शब्द का अर्थ है लघुगीत । लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती ।
  • साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है ;अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।
  • सुधा गुप्ता का सात छेद वाली मैं और रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का झरे हरसिंगार चर्चित ताँका -संग्रह हैं

चोका

चोका (लम्बी कविता) पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में महाकाव्य की कथाकथन शैली रही है । इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुए रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' ने बताया है:-

  • मूलत; चोका गाए जाते रहे हैं । चोका का वाचन उच्च स्वर में किया जाता रहा है ।यह प्राय: वर्णनात्मक रहा है । इसको एक ही कवि रचता है।
  • इसका नियम इस प्रकार है -

5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि समापन करते समय इस क्रम के अन्त में 7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । इस अन्त में जोड़े जाने वाले ताँका से पहले कविता की लम्बाई की सीमा नहीं है । इस कविता में मन के पूरे भाव आ सकते हैं ।

हाइकु का चित्रात्मक निरूपण है हाइगा

हाइगा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है हाइ और गाहाइ शब्द का अर्थ है हाइकु जो जापनी कविता की एक समर्थवान विधा है और गा का तात्पर्य है चित्र । इस प्रकार हाइगा का अर्थ है चित्रों के समायोजन से वर्णित किया गया हाइकु

  • वास्तव में हाइगा जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-’चित्र-कविता’ ।
  • हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है …(‘‘हाइ” = कविता या हाइकु + “गा” = रंगचित्र चित्रकला)
  • हाइगा की शुरुआत 17 वीं शताब्दी में जापान में हुई | उस जमाने में हाइगा रंग - ब्रुश से बनाया जाता था |
  • फ़िलहाल कविता कोश में रचनाओं को जोडे जाने के संबंध में अपनाये जा रहे मानकों के अनुरूप इस कोश में चित्रात्मक रचनाओं (जैसे कि हाइगा या चित्र पर लिखे शे’र और ग़ज़ल) इत्यादि का संकलन नहीं किया जा रहा है। ॠता शेखर 'मधु' ने 2013 में प्रथम हाइगा-संग्रह सम्पादित किया।

पुस्तकें / शोध- कार्य

हिन्दी में हाइकु रचने वालों की सूची

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हाइकु