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| + | * [[रण्डी -मुण्डी अण्णवि बेसें / सरहपा]] | ||
| + | * [[दुलि दुहि पिटा धरण न जाउ / सरहपा]] | ||
| + | * [[ऊँचा-ऊँचा पाबत, तहिं वसै सबरी वाला / सरहपा]] | ||
| + | * [[ब्राह्मण न जानते भेद / सरहपा]] | ||
| + | * [[ध्यान-रहित क्या कीजै ध्यानै / सरहपा]] | ||
| + | * [[गुरु के वचन अमियरस / सरहपा]] | ||
| + | * [[खाते पीते सुरत रमंते / सरहपा]] | ||
| + | * [[एहिं सों सरस्वती प्रयाग / सरहपा]] | ||
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सरहपा
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| जन्म | 8वीं शताब्दी (पूर्व भाग) अनुमानित | 
|---|---|
| निधन | 8वीं शताब्दी अनुमानित | 
| उपनाम | सरोरुह वज्र, राहुल भद्र | 
| जन्म स्थान | ग्राम राज्ञी, भागलपुर (भंगल) | 
| कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
| दोहाकोशगीति | |
| विविध | |
| आदिकाल (अपभ्रंश) के कवि। इन्हें हिन्दी का पहला कवि माना जाता है। इनसे पहले कवि बाण का नाम आता है, लेकिन बाण की रचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं। | |
| जीवन परिचय | |
| सरहपा / परिचय | |
राहुल सांकृत्यायन द्वारा अनूदित वज्रगीतियाँ
- जिमि पवन-घाते अचल जल / सरहपा
- पशु जिसमें दुःख न करै, पंडित उसमें दुःख भरै / सरहपा
- विकसित आनन्द का विषय पाइ / सरहपा
- जो परखै, सर्प डंसै, सोई मरै / सरहपा
- तर्जनी से लखाए अन्तरिक्ष दीखै नही गुरु से लखाया / सरहपा
- पथरकटनी और श्वेतपटी / सरहपा
सरहपा के पद
- अद्भुत हुंकार - भव चित्त गगने / सरहपा
- रण्डी -मुण्डी अण्णवि बेसें / सरहपा
- दुलि दुहि पिटा धरण न जाउ / सरहपा
- ऊँचा-ऊँचा पाबत, तहिं वसै सबरी वाला / सरहपा
- ब्राह्मण न जानते भेद / सरहपा
- ध्यान-रहित क्या कीजै ध्यानै / सरहपा
- गुरु के वचन अमियरस / सरहपा
- खाते पीते सुरत रमंते / सरहपा
- एहिं सों सरस्वती प्रयाग / सरहपा
 
	
	


