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"आओ नई सहर का नया शम्स रोक लें / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'" के अवतरणों में अंतर
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*[[काेई पाेखर नहीं सूखे काेई दरया नहीं सूखे / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] | *[[काेई पाेखर नहीं सूखे काेई दरया नहीं सूखे / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] | ||
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+ | *[[बंद होने से ही लाखों की हुई / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] | ||
+ | *[[माना मुझे नसीब तेरा डर नहीं हुआ / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] | ||
+ | *[[झूठ फैलाने का हैं हथियार अब / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] | ||
*[[कहाँ जी पाते हैं ख़ुद से मसाफ़त जिनके मन में है / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] | *[[कहाँ जी पाते हैं ख़ुद से मसाफ़त जिनके मन में है / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] | ||
+ | *[[जगमगाते जुगनुओं के काफिले हैं / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ']] |
04:14, 27 नवम्बर 2021 का अवतरण
आओ नई सहर का नया शम्स रोक लें
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रचनाकार | [[विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
]] |
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प्रकाशक | के.बी. एस.प्रकाशन, 18/91 ए, ईस्ट मोती बाग़, सराय रोहिल्ला, सुदर्शन पार्क, नई दिल्ली-110007 |
वर्ष | 2019 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 84 |
ISBN | |
विविध |
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ग़ज़लें
- हमसफ़र और पथ के पत्थर एक जैसे हो गए / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- ये मुमकिन है कि मुझसे कुछ तो वो रूठा हुआ होगा / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- काेई पाेखर नहीं सूखे काेई दरया नहीं सूखे / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- अगर वो ज़द में है तो उसपे दावा क्यों नहीं होता / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- बंद होने से ही लाखों की हुई / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- माना मुझे नसीब तेरा डर नहीं हुआ / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- झूठ फैलाने का हैं हथियार अब / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- कहाँ जी पाते हैं ख़ुद से मसाफ़त जिनके मन में है / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'
- जगमगाते जुगनुओं के काफिले हैं / विनोद प्रकाश गुप्ता 'शलभ'