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− | मैं घर लौटा पर मेरी प्रतिक्रिया ..सुनीता काम्बोज
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− | मैं घर लौटा कविता संग्रह श्री रामेश्वर काम्बोज "हिमांशु"जी द्वारा रचित अति उत्तम कृति हैं । इस संग्रह पर प्रतिक्रिया देने के लिए मेरा साहित्यिक कद अभी बहुत छोटा है फिर भी मैंने अपनी नन्ही कलम से इस पुस्तक पर प्रतिक्रिया देने का प्रयास किया है । श्री हिमांशु जी स्थापित साहित्यकार हैं आपके व्यंग्य ,लघुकथाओं ,हाइकु,माहिया ,ताँका चौका ,बाल साहित्य आदि विधाओं की अदभुत कशिश ने हमेशा पाठक मन को तृप्ति प्रदान की है ।आज ‘मैं घर लौटा’ काव्य- संग्रह पढ़कर मन भाव विभोर हो गया । आपके साहित्यिक अनुभव इस संग्रह की हर रचना से झरता हुआ प्रतीत होते हैं । अनुभव ,भावों व शिल्प की सुगंध से परिपूर्ण ये रचनाएँ नवोदित रचनाकारों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करेंगी ।
| + | |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |
− | गद्य के साथ- साथ पद्य पर इतनी धीरता व गम्भीरता से सृजन करना साधरण बात नहीं है । हर विधा में पूर्णता आपकी विलक्षण प्रतिभा को दर्शाती है। जब मैं मैंने इस संग्रह की प्रथम रचना पढ़ी तो ऐसे लगा मानो काव्य- सरोवर के कमल पुष्पों को स्पर्श कर लिया हो । पहली रचना के कुछ अंश-
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− | अन्धकार ये कैसा छाया
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− | सूरज भी रह गया सहमकर
| + | |चित्र= |
− | कवि मन के ये उद्गागार पढ़कर आशाओं और साहस का समन्दर आगे तैरने लगा। अगले बन्ध में जैसे अँधेरों की आँख में आँख मिलाकर जब कवि ने यह कहकर मन अग्र्व और उत्साह से भर दिया-
| + | |नाम= मैं घर लौटा |
− | दरबारों में हाजिर होकर,गीत नहीं हम गाने वाले
| + | |रचनाकार= [[रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] |
− | चरण चूमना नहीं है आदत,ना हम शीश झुकाने वाले
| + | |प्रकाशक=अयन प्रकाशन, 1/20 महरौली , ,नई दिल्ली–110030 |
− | मेहनत की सूखी रोटी भी,हमने खाई है गा गा कर
| + | |वर्ष=2015 |
− | आज कवि वर्ग के लिए सार्थक सन्देश देते हुए कवि ने मेहनत को अपनी पतवार बनाया है । ये रचनाएँ जिस पाठक तक जाएँगी उसके अंतर्मन को अवश्य छू लेंगीं ।
| + | |भाषा=हिन्दी |
− | खुद्दारी की महक और सकारत्मक दृष्टिकोण रखती इस कविता में जिस अंधकार को सूरज भी सहम गया उसे चुनौती दे कर निराश मानवता में साहस भरा है।अपना मन,अमलतास , आजादी है सभी रचनाओं का सौन्दर्य अपनी और आकर्षित करता है-
| + | |विषय=कविताएँ |
− | गुंडे छूटे,जीभर लूटे, आजादी है
| + | |शैली= |
− | छीना चन्दा,अच्छा धन्धा,आजादी है
| + | |पृष्ठ= 184 |
− | आज पुजारी,बने जुआरी ,आजादी है
| + | |ISBN=978-81-7408-861-1 |
− | ढोंगी बाबा ,अच्छा ढाबा ,आजादी है
| + | |विविध=मूल्य(सजिल्द) :360 |
− | ऐसा लगता है इस रचना में आज के परिवेश की तस्वीर खींच दी हो,कवि ने बड़ी निर्भीकता से वर्तमान स्थिति पर प्रहार किया है । यही सच्चे रचनाकार की पहचान है कि वो समाज और सत्ता जो दर्पण दिखलाते रहें ।
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− | रात और दिन
| + | * [[इस सभा में चुप रहो / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] |
− | काम ही काम
| + | * [[लौटते कभी नहीं / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] |
− | आराम न भाया
| + | * [[अंधकार ये कैसा छाया / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] |
− | मेहनतकश जीवन की कहानी जीवन की कशमश, व्यकुलता और पूर्णता हर रंग इस रचना में समाहित मिला। आराम न भाया रचना जीवन की किताब जैसी लगती है । संदेशात्मक, प्राकृतिक सौन्दर्य, गहन संवेदना,रागात्मकता से परिपूर्ण उत्कृष्ट रचनाएँ मन पर गहरी छाप छोड़ती हैं ।ऐसे लगता है ये कविता जीवन की कड़क धूप में ठंडी छाँव प्रदान कर रही हैं ।
| + | * [[गोरखधन्धा / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] |
− | मानवता और दानवता दोनों मानव मन में विधमान है ये निर्णय मानव को लेना है कि उसे किस रास्ते पर जाना है । रचना का ये बन्ध ह्रदय यही बात उजागर कर रहा है-
| + | * [[अपना मन / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] |
− | मानव और दानव में यूँ तो,भेद नजर नहीं आएगा
| + | * [[इसे ध्यान में रखना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] |
− | एक पोंछता बहते आँसू ,जी भर एक रुलाएगा
| + | * [[एक उदास लड़की के लिए /रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] |
− | आज मनुष्य एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में यही सब कर रहा है । वास्तविकता यही है की केवल कर्मों से ही मानवता का अनुमान लगाया जाएगा । मानव और दानव का अंतर केवल उसके कर्म ही निर्धारित करते हैं वही उसे एक दूसरे से भिन्न करता है।
| + | *[[अब बच्चे, बच्चे नहीं रहे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] |
− | संस्कार और परम्पराएँ ,रिश्ते की गरिमा हमे जीवन के सही अर्थ समझाते हैं तुम बोना काँटे, तुम मत घबराना,दिया जलता रहे सभी रचनाएँ जीवन की सच्चाई से रू-ब-रू करवाती हैं ।रचनाओं की लयबद्धता उन्हें जिह्वा पर स्थापित कर देती है ।
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− | कवि के ह्रदय में विरह के बाद मिलन का सुख और विरह की पीड़ा इस रचना में समाई हुई है-
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− | कितना अच्छा होता जो तुम
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− | यूँ वर्षो पहले मिल जाते
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− | सच मानों मन के आँगन में
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− | फिर फूल हजारों खिल जाते
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− | ख़ुशबू से भर जाता आँगन
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− | प्रसन्नता में छुपी उदासी का संजीव चित्रण इस कविता की सुंदरता को कई गुना कर गया । रचना में मिलन सुख और वेदना दोनों रूप है । विलम्ब के उपरांत मिलन का सुख भी विरह के दर्द नहीं भुला पाता ।
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− | रिश्तों से ही जीवन आनन्दमय होता है बहन भाई के पावन स्नेह की डोर उन्हें आजीवन बाँधे रखती है ये निच्छल प्रेम अतुलनीय है ।
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− | सारे जहाँ का प्यार हैं बहनें
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− | गरिमा रूप साकार है बहनें
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− | बँधा रेशमी धागों से जो
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− | अटूट प्यार का तार है बहनें
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− | कवि के इन भावों में जैसे सारे संसार का सुख समा गया हो । रिश्तों का माधुर्य, सुकोमलता,आत्मीयता स्नेह की वर्षा कर रही है । गुलमोहर की छाँव ,जंगल जंगल रचनाएँ एक बार पढ़कर बार बार पढ़ने को मन करता है । यही छंद सौन्दर्य का आकर्षण होता है । पुरबिया मजदूर कविता के माध्यम से जनमानस मजदूर वर्ग की कठिनाइयों और पीड़ा को महसूस कर रहा है । यही इस संग्रह की सफलता है कि रचना जिस भावना से रचना लिखी गई उस उद्देश्य की पूर्ति हो रही है ।
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− | ‘मेरी माँ’ रचना के एक एक शब्द में माँ की छवि नजर आती है ।
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− | चिड़ियों के जगने से पहले
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− | जग जाती है मेरी माँ
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− | माँ का स्नेह ममता , माँ की मनोभावना मैं इस रचना को माँ की तस्वीर कहूँगी । माँ को कवि ने माँ को सबसे बड़ा तीर्थ कह कर जैसे कविता से माँ की आराधना की हो मैं कवि की इस भावना को नमन करती हूँ ।
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− | सुख दुख जीवन की गाड़ी के पहिए हैं; परन्तु कवि ने दुःख और अँधेरे से लड़ने का साहस इस कविता के माध्यम से दिया है जो सरहानीय है ।
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− | अँधियारे के सीने पर हम
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− | शत शत दीप जलाए
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− | दिल में दर्द बहुत है माना
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− | फिर भी कुछ तो गाए
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− | कवि कहते हैं निडर होकर चलने से ये अंधकार भी रौशनी में बदल जाएगा । चाहे दुःख की नदी लम्बी है, पर आशा और विश्वास की पतवार से मंजिल मिलनी निश्चित है । कवि ने निराश मानव के ह्रदय में आशा भर कर निरन्तर पथ पर चलने को प्रेरित कर रहा है ।
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− | इस रचनाओं की मधुरता ,गेयता, पाठक के मन तक पहुँचने में सफलता प्रदान करती हैं ।
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− | यह संग्रह पाठक वर्ग में एक अलग पहचान रखता है । आपकी लेखनी ऐसे ही निरन्तर चलती रहे इसी मंगलकामना के साथ हार्दिक बधाई ।
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− | सुनीता काम्बोज
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