"शिरीष कुमार मौर्य" के अवतरणों में अंतर
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+ | आसमानों का असर बाक़ी रहे | ||
+ | छीन ले परवाज़, पर बाक़ी रहे | ||
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+ | टूटते कांधों पे' सर बाक़ी रहे | ||
+ | जाता रहे मकान घर बाक़ी रहे | ||
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+ | सोख डाला हर समंदर वक़् त ने | ||
+ | सीप में थे जो गुहर बाक़ी रहे | ||
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+ | मैं भले ही रुक गया थक-हारकर | ||
+ | पांव में मेरे सफ़र बाक़ी रहे | ||
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+ | टूट जाएं मेरी तामीरें मगर | ||
+ | मेरे हाथों में हुनर बाक़ी रहे | ||
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+ | दुश्मनों ने तो हमें अपना लिया | ||
+ | दोस्त के सीने में डर बाक़ी रहे | ||
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+ | भूल जाए अब ज़ेहन हर बात को | ||
+ | एक छोटी-सी बहर बाक़ी रहे | ||
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+ | दोस्ती पल में सिमट कर खो गई | ||
+ | और झगड़े उम्र भर बाक़ी रहे | ||
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+ | मिट गए जो ख़ास थे,मशहूर थे | ||
+ | और अदने-से बशर बाक़ी रहे | ||
+ | *** | ||
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+ | '''दो''' | ||
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+ | कोई वादा तलब नहीं होता | ||
+ | पहले होता था अब नहीं होता | ||
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+ | वो जो करते हैं सैकड़ों बातें | ||
+ | उनका कोई सबब नहीं होता | ||
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+ | बेअसर होती हैं दुआएं मेरी | ||
+ | जब मैं होता हूं, रब नहीं होता | ||
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+ | वो निभाता है बहुत दूर तलक | ||
+ | जिसको रिश्तों का ढब नहीं होता | ||
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+ | पहले मिलते थे दोस्तों से गले | ||
+ | ये तमाशा भी अब नहीं होता | ||
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+ | उसके मिलने पे' सहम जाता हूं | ||
+ | उससे मिलना भी कब नहीं होता | ||
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20:16, 23 अप्रैल 2011 का अवतरण
जन्म | 13 दिसंबर 1973 |
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जन्म स्थान | नागपुर |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
पहला कदम, शब्दों के झुरमुट में,धरती जानती है(इजरायली कवि येहूदा आमीखाई की कविताओं का अनुवाद - संवाद प्रकाशन) | |
विविध | |
1994 में एक काव्य-पुस्तिका तथा 2004 में पहला कविता-संग्रह प्रकाशित। दूसरा संग्रह 'पृथ्वी पर एक जगह' 2009 में। 2004 में प्रथम अंकुर मिश्र पुरस्कार तथा 2009 में लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई सम्मान। तीसरा संग्रह 'जैसे कोई सुनता हो मुझे' शीघ्र प्रकाश्य। | |
जीवन परिचय | |
शिरीष कुमार मौर्य / परिचय |
- पहला क़दम / शिरीष कुमार मौर्य (कविता संग्रह)
- पृथ्वी पर एक जगह / शिरीष कुमार मौर्य (कविता संग्रह)
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- शनि / शिरीष कुमार मौर्य
- रुलाई / शिरीष कुमार मौर्य
- बनारस से निकला हुआ आदमी / शिरीष कुमार मौर्य
- हल / शिरीष कुमार मौर्य
- पुरानी हवाएं / शिरीष कुमार मौर्य
- ग्रामदेवता / शिरीष कुमार मौर्य
- उसका लौटना / शिरीष कुमार मौर्य
- राजा और किले का किस्सा / शिरीष कुमार मौर्य
- अपने शहर में / शिरीष कुमार मौर्य
- गालियाँ / शिरीष कुमार मौर्य
- विद्वेष / शिरीष कुमार मौर्य
- शोकसभा में / शिरीष कुमार मौर्य
- किताबें / शिरीष कुमार मौर्य
- राहु / शिरीष कुमार मौर्य
- बेटे के साथ दुनिया / शिरीष कुमार मौर्य
- प्रधानाध्यापक निलंबित / शिरीष कुमार मौर्य
- औरतों की दुनिया में एक आदमी / शिरीष कुमार मौर्य
- मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग - मुक्तिबोध को याद करते हुए / शिरीष कुमार मौर्य
- टीकाराम पोखरियाल की वसन्तकथा / शिरीष कुमार मौर्य
- जब रात के दो बजते हैं ! / शिरीष कुमार मौर्य
- मैं नैनीताल में लखनऊ के पड़ोस मे रहता हूँ / शिरीष कुमार मौर्य
- चाँदनी डीलक्स / शिरीष कुमार मौर्य
- एक अविवाहिता का अविस्मरण / शिरीष कुमार मौर्य
- एक चश्मदीद का बयान… / शिरीष कुमार मौर्य
- एक मध्यप्रदेशीय सामन्ती क़स्बे के आकाश पर… / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
- / शिरीष कुमार मौर्य
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ग़ज़लें
एक
आसमानों का असर बाक़ी रहे छीन ले परवाज़, पर बाक़ी रहे
टूटते कांधों पे' सर बाक़ी रहे जाता रहे मकान घर बाक़ी रहे
सोख डाला हर समंदर वक़् त ने सीप में थे जो गुहर बाक़ी रहे
मैं भले ही रुक गया थक-हारकर पांव में मेरे सफ़र बाक़ी रहे
टूट जाएं मेरी तामीरें मगर मेरे हाथों में हुनर बाक़ी रहे
दुश्मनों ने तो हमें अपना लिया दोस्त के सीने में डर बाक़ी रहे
भूल जाए अब ज़ेहन हर बात को एक छोटी-सी बहर बाक़ी रहे
दोस्ती पल में सिमट कर खो गई और झगड़े उम्र भर बाक़ी रहे
मिट गए जो ख़ास थे,मशहूर थे और अदने-से बशर बाक़ी रहे
दो
कोई वादा तलब नहीं होता पहले होता था अब नहीं होता
वो जो करते हैं सैकड़ों बातें उनका कोई सबब नहीं होता
बेअसर होती हैं दुआएं मेरी जब मैं होता हूं, रब नहीं होता
वो निभाता है बहुत दूर तलक जिसको रिश्तों का ढब नहीं होता
पहले मिलते थे दोस्तों से गले ये तमाशा भी अब नहीं होता
उसके मिलने पे' सहम जाता हूं उससे मिलना भी कब नहीं होता