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+ | पूछता क्यों शेष कितनी रात? | ||
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+ | तुम्हारी बीन ही में बज रहे हैं बेसुरे सब तार! | ||
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+ | घिरती रहे रात! | ||
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+ | मेरे ओ विहग से गान! | ||
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+ | अलि मैं कण-कण को जान चली! |
18:19, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण
दीपशिखा
रचनाकार | महादेवी वर्मा |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | 1942 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता संग्रह |
विधा | गीत |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
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यह महादेवी वर्मा जी की अत्यन्त प्रसिद्ध चित्र-गीतात्मक पुस्तक है जिसमें महादेवीजी ने अपनी कवितायें अपने बनाये चित्रों पर स्वयम् लिखी थीं। यह काव्य संग्रह 1942 में प्रकाशित हुआ था।
- दीप मेरे जल अकम्पित / महादेवी वर्मा
- पंथ होने दो अपरिचित / महादेवी वर्मा
- ओ चिर नीरव / महादेवी वर्मा
- प्राण हँस कर ले चला जब / महादेवी वर्मा
- सब बुझे दीपक जला लूँ / महादेवी वर्मा
- हुए शूल अक्षत / महादेवी वर्मा
- आज तार मिला चुकी हूँ / महादेवी वर्मा
- कहाँ से आये बादल काले / महादेवी वर्मा
- यह सपने सुकुमार / महादेवी वर्मा
- तरल मोती से नयन भरे / महादेवी वर्मा
- विहंगम-मधुर स्वर तेरे / महादेवी वर्मा
- जब यह दीप थके तब आना / महादेवी वर्मा
- धूप सा तन दीप सी मैं / महादेवी वर्मा
- तू धूल-भरा ही आया / महादेवी वर्मा
- जो न प्रिय पहिचान पाती / महादेवी वर्मा
- आँसुओं के देश में / महादेवी वर्मा
- गोधूली अब दीप जगा ले / महादेवी वर्मा
- मैं न यह पथ जानती री / महादेवी वर्मा
- झिप चलीं पलकें तुम्हारी पर कथा है शेष!/ महादेवी वर्मा
- मिट चली घटा अधीर! / महादेवी वर्मा
- अलि कहाँ सन्देश भेजूँ? / महादेवी वर्मा
- मोम सा तन घुल चुका / महादेवी वर्मा
- कोई यह आँसू आज माँग ले जाता! / महादेवी वर्मा
- मेघ सी घिर झर चली मैं!/ महादेवी वर्मा
- निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते!/ महादेवी वर्मा
- सब आँखों के आँसू उजले, सबके सपनों में सत्य पला!/ महादेवी वर्मा
- फिर तुमने क्यों शूल बिछाए?/ महादेवी वर्मा
- मैं क्यों पूछूँ यह विरह-निशा,कितनी बीती क्या शेष रही?/ महादेवी वर्मा
- आज दे वरदान!/ महादेवी वर्मा
- प्राणों ने कहा कब दूर,पग ने कब गिने थे शूल?/ महादेवी वर्मा
- सपने जगाती आ!/ महादेवी वर्मा
- मैं पलकों में पाल रही हूँ यह सपना सुकमार किसी का!/ महादेवी वर्मा
- गूँजती क्यों प्राण-वंशी!/ महादेवी वर्मा
- क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे!/ महादेवी वर्मा
- शेष यामिनी मेरा निकट निर्वाण!पागल रे शलभ अनजान!/ महादेवी वर्मा
तेरी छाया में अमिट रंग
आँसू से धो आज इन्हीं अभिशापों को वर कर जाऊंगी!
पथ मेरा निर्वाण बन गया!
प्रति पग शत वरदान बन गया!
प्रिय मैं जो चित्र बना पाती!
लौट जा ओ मलय-मारुत के झकोरे!
पूछता क्यों शेष कितनी रात?
तुम्हारी बीन ही में बज रहे हैं बेसुरे सब तार!
तू भू को प्राणों का शतदल!
पुजारी! दीप कहीं सोता है!
घिरती रहे रात!
जग अपना भाता है!
मैं चिर पथिक
मेरे ओ विहग से गान!
सजल है कितना सबेरा !
अलि मैं कण-कण को जान चली!