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"दीपशिखा / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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* [[तू धूल-भरा ही आया / महादेवी वर्मा]]
 
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* [[जो न प्रिय पहिचान पाती / महादेवी वर्मा]]
 
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* [[आँसुओं के देश में / महादेवी वर्मा]]
 
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* [[गोधूली इब दीप जगा ले / महादेवी वर्मा]]
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* [[मैं न यह पथ जानती री / महादेवी वर्मा]]
 
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* [[झिप चलीं पलकें तुम्हारी पर कथा है शेष!/ महादेवी वर्मा]]
 
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* [[मोम सा तन घुल चुका / महादेवी वर्मा]]
 
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* [[कोई यह आँसू आज माँग ले जाता! / महादेवी वर्मा]]
 
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* [[मिट चली घटा अधीर!/महादेवी वर्मा]]
 
 
* [[मेघ सी घिर झर चली मैं!/ महादेवी वर्मा]]
 
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* [[निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते!/ महादेवी वर्मा]]
 
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* [[क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे!/ महादेवी वर्मा]]
 
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* [[शेष यामिनी मेरा निकट निर्वाण!पागल रे शलभ अनजान!/ महादेवी वर्मा]]
 
* [[शेष यामिनी मेरा निकट निर्वाण!पागल रे शलभ अनजान!/ महादेवी वर्मा]]
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तेरी छाया में अमिट रंग
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आँसू से धो आज इन्हीं
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अभिशापों को वर कर जाऊंगी!
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पथ मेरा निर्वाण बन गया!
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प्रति पग शत वरदान बन गया!
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प्रिय मैं जो चित्र बना पाती!
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लौट जा ओ मलय-मारुत के झकोरे!
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पूछता क्यों शेष कितनी रात?
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तुम्हारी बीन ही में बज रहे हैं बेसुरे सब तार!
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तू भू को प्राणों का शतदल!
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पुजारी! दीप कहीं सोता है!
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घिरती रहे रात!
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जग अपना भाता है!
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मैं चिर पथिक
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मेरे ओ विहग से गान!
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सजल है कितना सबेरा ‍‍!
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अलि मैं कण-कण को जान चली!

18:19, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण


दीपशिखा
Deepshikha.jpg
रचनाकार महादेवी वर्मा
प्रकाशक
वर्ष 1942
भाषा हिन्दी
विषय कविता संग्रह
विधा गीत
पृष्ठ
ISBN
विविध
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।


यह महादेवी वर्मा जी की अत्यन्त प्रसिद्ध चित्र-गीतात्मक पुस्तक है जिसमें महादेवीजी ने अपनी कवितायें अपने बनाये चित्रों पर स्वयम् लिखी थीं। यह काव्य संग्रह 1942 में प्रकाशित हुआ था।


तेरी छाया में अमिट रंग

आँसू से धो आज इन्हीं अभिशापों को वर कर जाऊंगी!


पथ मेरा निर्वाण बन गया! प्रति पग शत वरदान बन गया!

प्रिय मैं जो चित्र बना पाती!


लौट जा ओ मलय-मारुत के झकोरे!

पूछता क्यों शेष कितनी रात?


तुम्हारी बीन ही में बज रहे हैं बेसुरे सब तार!

तू भू को प्राणों का शतदल!

पुजारी! दीप कहीं सोता है!

घिरती रहे रात!

जग अपना भाता है!

मैं चिर पथिक

मेरे ओ विहग से गान!

सजल है कितना सबेरा ‍‍!

अलि मैं कण-कण को जान चली!