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| युग की संध्या, कृषक-वधु सी, किसका पंथ निहार रही<br> | | युग की संध्या, कृषक-वधु सी, किसका पंथ निहार रही<br> |
| उलझी हुई समस्याओं की, बिखरी लटें, सँवार रही! | | उलझी हुई समस्याओं की, बिखरी लटें, सँवार रही! |
05:26, 29 नवम्बर 2006 का अवतरण
...काव्य मोती...
युग की संध्या, कृषक-वधु सी, किसका पंथ निहार रही
उलझी हुई समस्याओं की, बिखरी लटें, सँवार रही!
--नरेन्द्र शर्मा
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