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क़तील शिफ़ाई
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क़तील शिफ़ाई
जन्म | 24 दिसंबर 1919 |
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निधन | 11 जुलाई 2001 |
उपनाम | क़तील |
जन्म स्थान | हरिपुर, हज़ारा, पाकिस्तान |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
क़तील शिफ़ाई का मूल नाम औरंगज़ेब खान था। | |
जीवन परिचय | |
क़तील शिफ़ाई / परिचय |
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- सारी बस्ती में ये जादू / क़तील
- गम के सहराओ में / क़तील
- बशर के रूप में एक दिलरूबा तलिस्म बनें / क़तील
- आओ कोई तफरीह का सामान किया जाए / क़तील
- हाथ दिया उसने मेरे हाथ में / क़तील
- मुझे आई ना जग से लाज / क़तील
- जब भी चाहें एक नई सूरत बना लेते हैं लोग / क़तील
- अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की / क़तील
- अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझ को / क़तील
- अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ / क़तील
- बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील
- चराग़ दिल के जलाओ कि ईद का दिन है / क़तील
- दर्द से मेरा दामन भर दे या अल्लाह / क़तील
- दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया / क़तील
- गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं / क़तील
- गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे / क़तील
- हिज्र की पहली शाम के साये / क़तील
- इक-इक पत्थर जोड़ के मैनें जो दीवार बनाई है / क़तील
- जो भी ग़ुंचा तेरे होंठों पर खिला करता है / क़तील
- किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह / क़तील
- मैनें पूछा पहला पत्थर मुझ पर कौन उठायेगा / क़तील
- मिल कर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम / क़तील
- पहले तो अपने दिल की रज़ा जान जाइये / क़तील
- परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ / क़तील
- प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया ही नहीं / क़तील
- रची है रतजगो की चांदनी जिन की जबीनों में / क़तील
- रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में / क़तील
- सदमा तो है मुझे भी के तुझसे जुदा हूँ मैं / क़तील
- शाम के साँवले चेहरे को निखारा जाये / क़तील
- तुम पूछो और मैं ना बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं / क़तील
- तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है / क़तील
- तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते / क़तील
- उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू / क़तील
- वफ़ा के शीशमहल में सजा लिया मैनें / क़तील
- वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे / क़तील
- यारो किसी क़ातिल से कभी प्यार न माँगो / क़तील
- ये मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे / क़तील
- यों लगे दोस्त तेरा मुझसे ख़फ़ा हो जाना / क़तील
- यूँ चुप रहना ठीक नहीं कोई मीठी बात करो / क़तील
- ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं / क़तील
- काम आ गई दीवानगी अपनी / क़तील
- शम्मअ़-ए-अन्जुमन / क़तील
- निगाहों में ख़ुमार आता हुआ महसूस होता है / क़तील
- न बोल इस बज़्म में ऐ दोस्त क्यों दीवाना बनता है / क़तील
- दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया / क़तील
- ग़ुंचों का रस कलियों का मस एक ज़माने को ललचाए / क़तील
- तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते / क़तील
- यह मोजज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे / क़तील
- धूप है रंग है या सदा है / क़तील
- नामाबर अपना हवाओं को बनाने वाले / क़तील
- सहमा-सहमा-सा इक साया, महकी-महकी-सी इक चाप/ क़तील
- पत्थर उसे न जान पिघलता भी देख उसे / क़तील
- दिल को ग़मे-हयात गवारा है इन दिनों / क़तील
- उफ़ुक़ के उस पार ज़िन्दगी के उदास लम्हे उतार आऊँ / क़तील
- तीन कहानियाँ / क़तील
- हर बे-ज़बाँ को शोला नवा कह लिया करो / क़तील
- लिख दिया अपने दर पे किसी ने इस जगह प्यार करना मना है / क़तील
- किया इश्क था जो / क़तील
- देखते जाओ मगर कुछ भी / क़तील
- प्यार की राह में ऐसे भी मकाम आते हैं/ क़तील
- दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं / क़तील
- हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ / क़तील
- जब अपने एतिक़ाद के महवर से हट गया / क़तील
- खुला है झूट का बाज़ार / क़तील
- क्या जाने किस ख़ुमार में / क़तील
- मंज़िल जो मैं ने पाई तो शशदर भी मैं ही था / क़तील
- फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा / क़तील
- शायद मेरे बदन की रुसवाई चाहता है / क़तील
- सिसकियाँ लेती हुई ग़मगीं हवाओ चुप रहो / क़तील
- तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले / क़तील
- विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है / क़तील
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