भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नागफनियों ने सजाईं महफ़िलें / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:53, 21 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: *तर्जुमानी जहान की, की है / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि" *[[सोचते ही ये ...)
- तर्जुमानी जहान की, की है / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- सोचते ही ये अहले-सुख़न रह गये / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- बहारें हैं फीकी, फुहारें हैं नीरस / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- लाया था जो हमारे लिये जाम, पी गया / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- उनका तो ये मज़ाक रहा हर किसी के साथ / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- नाकर्दा गुनाहों की मिली यूँ भी सज़ा है / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- इरादा वही जो अटल बन गया है / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- मस्त सब को कर गई मेरी ग़ज़ल / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- है भंवरे को जितना कमल का नशा / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- यूँ पवन, रुत को रंगीं बनाये / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- नाम दुनिया में कमाना चाहिये / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- क्यों न हम दो शब्द तरुवर पर कहें / राम प्रसाद शर्मा "महर्षि"
- जैसी तुम से बिछुड़ कर मिलीं हिचकियाँ/ रामप्रसाद शर्मा "महर्षि"
- जाम हम बढ़के उठा लेते उठाने की तरह / रामप्रसाद शर्मा "महर्षि"
- गीत ऐसा कि जैसे कमल चाहिये / रामप्रसाद शर्मा "महर्षि"