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"चँहकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे / शृंगार-लतिका / द्विज" के अवतरणों में अंतर

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07:51, 29 जून 2011 के समय का अवतरण

मनहरन घनाक्षरी
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)

चहँकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे, बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सुहावने ।
खिलि उठीं एकै बार कलिका अपार, हलि-हलि उठे मारुत सुगंध सरसावने ॥
पलक न लागी अनुरागी इन नैननि पैं पलटि गए धौं कबै तरु मन-भाँवने ।
उँमगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघाँ लागे, फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने ॥१५॥