भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चँहकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:45, 29 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=या बिधि की सोभा निरखि / शृंग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"'मनहरन घनाक्षरी
"(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)"

चहँकि चकोर उठे, सोर करि भौंर उठे, बोलि ठौर-ठौर उठे कोकिल सुहावने ।
खिलि उठीं एकै बार कलिका अपार, हलि-हलि उठे मारुत सुगंध सरसावने ॥
पलक न लागी अनुरागी इन नैननि पैं पलटि गए धौं कबै तरु मन-भाँवने ।
उँमगि अनंद अँसुवान लौं चहूँघाँ लागे, फूलि-फूलि सुमन मरंद बरसावने ॥१५॥