खानाबदोश

| रचनाकार | अहमद फ़राज़ | 
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| प्रकाशक | राजपाल एंड सन्ज | 
| वर्ष | |
| भाषा | हिन्दी | 
| विषय | |
| विधा | |
| पृष्ठ | 335 | 
| ISBN | |
| विविध | 
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- हर्फ़े-ताज़ा की तरह क़िस्स-ए-पारीना / फ़राज़
 - न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक / फ़राज़
 - तेरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था / फ़राज़
 - यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी / फ़राज़
 - आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें / फ़राज़
 - मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी / फ़राज़
 - ना दिल से आह ना लब सदा निकलती है / फ़राज़
 - तेरी बातें ही सुनाने आये / फ़राज़
 - ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे / फ़राज़
 - दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें / फ़राज़
 - तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये / फ़राज़
 - गनीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी / फ़राज़
 - ज़ख्म को फ़ूल तो सर-सर को सबा कहते हैं / फ़राज़
 - तुझे उदास किया खुद भी सोगवार हुए / फ़राज़
 - बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी / फ़राज़
 - अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और / फ़राज़
 - जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना / फ़राज़
 - हम सुनायें तो कहानी और है / फ़राज़
 - संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया / फ़राज़
 - अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नजर आते हैं / फ़राज़
 - अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी / फ़राज़