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+ | * [[तुम जो कंचन हो, मैं जो रजकन हूँ / वीरेंद्र मिश्र]] | ||
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+ | * [[गीत नहीं है भीख कि जिसका निश्चित कोई दाता हो / वीरेंद्र मिश्र]] | ||
+ | * [[तानसेन की नगरी से जो गीत सन्देसा बनकर आए / वीरेंद्र मिश्र]] | ||
+ | * [[मेरे गीतम आरोहों में, स्वर-गंगा ख़ुद ही उतरी है / वीरेंद्र मिश्र]] |
10:42, 28 सितम्बर 2015 का अवतरण
मुखरित सम्वेदन
रचनाकार | वीरेंद्र मिश्र |
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प्रकाशक | पुस्तकायन, 2/ 4240 ए, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली -- 110002 |
वर्ष | 1990 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | मुक्तक संग्रह |
विधा | |
पृष्ठ | 305 |
ISBN | 978-93-80402-23-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- संचित है विष और सुधा का मेरा अपना सागर मंथन / वीरेंद्र मिश्र
- आस को रोकना / वीरेंद्र मिश्र
- तुम जो कंचन हो, मैं जो रजकन हूँ / वीरेंद्र मिश्र
- दीप में कितनी जलन है / वीरेंद्र मिश्र
- गीत नहीं है भीख कि जिसका निश्चित कोई दाता हो / वीरेंद्र मिश्र
- तानसेन की नगरी से जो गीत सन्देसा बनकर आए / वीरेंद्र मिश्र
- मेरे गीतम आरोहों में, स्वर-गंगा ख़ुद ही उतरी है / वीरेंद्र मिश्र