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"गौतम राजऋषि" के अवतरणों में अंतर
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+ | * [[खुद से ही बाजी लगी है / गौतम राजरिशी]] | ||
+ | * [[चुभती-चुभती सी ये कैसी पेड़ों से है उतरी धूप / गौतम राजरिशी]] | ||
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+ | * [[हैं जितनी परतें यहाँ आसमान में शामिल / गौतम राजरिशी]] | ||
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+ | * [[बहो, अब ऐ हवा! ऐसे कि ये मौसम सुलग उट्ठे / गौतम राजरिशी]] | ||
+ | * [[न समझो बुझ चुकी है आग / गौतम राजरिशी]] |
22:38, 22 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
गौतम राजऋषि
www.kavitakosh.org/grajrishi
www.kavitakosh.org/grajrishi
जन्म | 10 मार्च 1975 |
---|---|
जन्म स्थान | सहरसा, बिहार, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
पाल ले इक रोग नादाँ (2015) | |
विविध | |
भारतीय सेना में पदाधिकारी हैं। पूर्व में "गौतम राजरिशी" नाम से लेखन। | |
जीवन परिचय | |
गौतम राजरिशी / परिचय | |
कविता कोश पता | |
www.kavitakosh.org/grajrishi |
ग़ज़ल संग्रह
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले / गौतम राजरिशी
- असैनिक व्यथा-1 / गौतम राजरिशी
- है मुस्कुराता फूल कैसे तितलियों से पूछ लो / गौतम राजरिशी
- तू जो मुझसे जुदा नहीं होता / गौतम राजरिशी
- देख पंछी जा रहे अपने बसेरों में / गौतम राजरिशी
- हरी है ये ज़मीं हमसे कि हम तो इश्क बोते हैं / गौतम राजरिशी
- एक मुद्दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो / गौतम राजरिशी
- अब के ऐसा दौर बना है / गौतम राजरिशी
- वो जब अपनी ख़बर दे है / गौतम राजरिशी
- तू जब से अल्लादिन हुआ / गौतम राजरिशी
- सीखो आँखें पढ़ना साहिब / गौतम राजरिशी
- दूर क्षितिज पर सूरज चमका,सुब्ह खड़ी है आने को / गौतम राजरिशी
- जब से मुझको तूने छुआ है / गौतम राजरिशी
- परों का जब कभी / गौतम राजरिशी
- आईनों पे जमीं है काई लिख / गौतम राजरिशी
- ऊँड़स ली तूने जब साड़ी में गुच्छी चाभियों वाली / गौतम राजरिशी
- जल चुकी है फ़स्ल सारी पूछती अब आग क्या / गौतम राजरिशी
- एक ग़ज़ल है बनने को / गौतम राजरिशी
- जब छेड़ा मुजरिम का क़िस्सा / गौतम राजरिशी
- हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं / गौतम राजरिशी
- चीड़ के जंगल खड़े थे देखते लाचार से / गौतम राजरिशी
- रात भर चाँद को यूँ रिझाते रहे / गौतम राजरिशी
- खुद से ही बाजी लगी है / गौतम राजरिशी
- चुभती-चुभती सी ये कैसी पेड़ों से है उतरी धूप / गौतम राजरिशी
- देख पंछी जा रहें अपने बसेरों में / गौतम राजरिशी
- हैं जितनी परतें यहाँ आसमान में शामिल / गौतम राजरिशी
- इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है / गौतम राजरिशी
- बहो, अब ऐ हवा! ऐसे कि ये मौसम सुलग उट्ठे / गौतम राजरिशी
- न समझो बुझ चुकी है आग / गौतम राजरिशी